CBSEEducationमुहावरे, लोकोक्तियां (idioms, proverbs)

लोकोक्तियां


1. अंत भला सो भला : (अच्छा परिणाम देने वाला कार्य) – जगत में जिस कार्य का अंत भला, सो ही भला कार्य हुआ करता है।

2. अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत : (हानि हो जाने पर पछतावा करना व्यर्थ) – जब समय था, तब तो काम पर ध्यान दिया नहीं, अब नाहक रो रहे हो, अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

3. आम के आम गुठलियों के दाम : (दोहरा लाभ) – वह खेलों में भाग लेकर स्वस्थ तो रह ही सका, उसे अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं, आम के आम और गुठलियों के दाम।

4. आँख के अंधे गाँठ के पूरे : (मूर्ख लेकिन धनी) – गयाप्रसाद को कम मत समझो, उसका तो हर काम इस कहावत को पूरा करने वाला होता है कि आँख के अंधे और गाँठ के पूरे।

5. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है : (बुरी संगति में अच्छा-भला आदमी भी मारा जाता है) – तुम्हें सभी समझाया करते थे कि मुकेश से बचकर रहो; पर तुम नहीं माने और नकल करते पकड़े गए, तुम्हें पता होना चाहिए कि आटे के साथ घुन को भी पिसना पड़ता है।

6. इस हाथ देना, उस हाथ लेना : (किए का सुफल मिलना) – सदा से जगत का व्यवहार ‘इस हाथ दे और उस हाथ ले’ के अनुसार ही चला और चलता रहेगा।

7. उलटा चोर कोतवाल को डाँटे : (स्वयं अपराधी, पर दोष पूछने वाले पर डालना) – मेरी पुस्तक फाड़ देने का कारण जब मैंने जानना चाहा, तो महेश मुझ पर ही फटी किताब देने का दोषारोपण कर यह कहावत चरितार्थ करने लगा कि उलटा चोर कोतवाल को डाँटे।

8. ऊँट के मुँह में जीरा : (बड़े को कम वस्तु देना) – यह जानते हुए भी कि गाजर का हलवा मुझे बहुत प्रिय है, जरा सी प्लेट सामने रख ऊँट के मुँह में जीरा डालने की कहावत सच्ची करके दिखा रहे हो।

9. ऊँची दुकान फीका पकवान : (दिखावा अधिक, वास्तविकता कम) – सेल में बहुत बढ़िया वस्तु बहुत कम दाम में खरीद कर पता चल गया न कि इस प्रकार की ऊँची दुकान के पकवान फीके ही हुआ करते हैं।

10. एक अनार सौ बीमार : (वस्तु एक, लेने वाले अनेक) – कमाने वाले पिता के सामने फरमाइश रखने वाले परिवार के सदस्यों ने उसकी दशा ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली बना दी।

11. एक पंथ दो काज : (एक उपाय से दो काम) – सामान खरीदने जाकर वहाँ रहने वाले मित्र से भी मिलता जाऊँगा, हो गई न ‘एक पंथ दो काज’ वाली कहावत सच?

12. काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ा करती : (बुराई बार-बार नहीं फलती) – अरे जाओ भी! देख लिया तुम्हें कि कैसे शुभचिंतक हो, याद रखो कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ा करती।

13. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली : (बहुत बड़ा अंतर) – मुकेश बेचारा क्या मुकाबला कर पाएगा सुंदर लाल का। कहाँ मुकेश और कहाँ सुंदर। वह क्या कहा जाता है कि कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली।

14. कोयले की दलाली में मुँह काला : (बुरों के साथ बुराई लगती ही है) – केवल जुआरियों के पास बैठा होने पर ही वह पकड़ लिया गया। भई, कोयले की दलाली में मुँह काला तो हुआ ही करता है।

15. का वर्षा जब कृषि सुखाने : (समय बीतने पर मिले साधन बेकार) – जब वह पढ़ना चाहता था, किसी ने सहायता नहीं की। अब सभी सहायता की बातें करके जैसे जले पर नमक छिड़क रहे हों। वे समझते क्यों नहीं ‘का वर्षा जब कृषि सुखाने।’

16. खोदा पहाड़ निकली चुहिया : (परिश्रम अधिक लाभ बहुत कम) – पुस्तक मेले में बिक्री की बड़ी आशा लेकर गए थे; पर हुआ क्या खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

11. गागर में सागर भरना : (थोड़े में बहुत कहना) – ‘सलाम दिल्ली’ की लघुकथाएँ पढ़कर लगता है कि जैसे लेखक ने गागर में सागर भर दिया हो।

18. गंगा गए गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास : (मौकापरस्त होना) – आज के स्वार्थी राजनेता यह कहावत सचमुच पूरी करके दिखा रहे हैं कि गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास।

19. घाट-घाट का पानी पीना : (कई तरह के अनुभव पाना) – उसने घाट-घाट का पानी पी रखा है, तुम क्या बात कर पाओगे उससे?

20. चिराग तले अंधेरा : (अपना दोष स्वयं को दिखाई नहीं देता) – मास्टर साहब ने कई लड़कों को अच्छी शिक्षा देकर खूब सम्मान प्राप्त किया; परंतु वे अपने ही बेटे को कुछ न पढ़ा सके। कहते हैं न कि ‘चिराग तले अंधेरा’।

21. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए : (महाकंजूस व्यक्ति) – भागमल सेठ से चंदा मिलने की आशा करते हो, उसकी बात तो बस इतनी सी ही है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।

22. छाती पर साँप लोटना : (ईर्ष्या से जलना) – किसी की जरा-सी उन्नति और अच्छाई देखते ही किरण की छाती पर साँप लोटने लगते हैं।

23. यथा राजा तथा प्रजा : (नेता के समान ही जनता) – आज के सरकारी दफ़्तर और कर्मचारी भ्रष्ट मंत्रियों के समान ही भ्रष्ट होकर ‘यथा राजा तथा प्रजा’ कहावत सच्ची सिद्ध कर रहे हैं।

24. जिसकी लाठी उसकी भैंस : (बलवान की जीत) – देहातों में आज भी इस कहावत के अनुसार ही कार्य चल रहा है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस।

25. जैसी करनी वैसी भरनी : (कर्म के अनुसार फल मिलना) – रोने-चीखने से कुछ भी नहीं होने वाला। किए का फल तो भोगना ही होगा, जैसी करनी वैसी भरनी।

26. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं : (ज़्यादा बोलने वाले काम कुछ नहीं किया करते) – रश्मि जो बक-बक करे, चुपचाप सुन लिया करो, तुम्हें पता होना चाहिए कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।

27. जल में रहकर मगर से बैर : (आश्रय देने वाले से शत्रुता करना) – जल में रहकर मगर से बैर प्रकृति के नियम के भी विरुद्ध है, अतः दफ्तर में मैनेजर को खुश रखा करो।

28. जैसे को तैसा : (अच्छा-बुरा देख उसी प्रकार का व्यवहार करना) – सुधीर को दुत्कार कर तुमने ठीक ही तो किया। जैसे को तैसा ही नियम है।

29. थोथा चना बाजे घना : (ओछा व्यक्ति दिखावा अधिक करता है) – हर समय बड़ी-बड़ी बातें करते रहने वाला लोकेश वास्तव में ‘थोथा चना बाजे घना’ कहावत ही पूरी कर रहा है।

30. तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर : (अपनी औकात के अनुसार काम करना चाहिए) – क्यों बेकार में बड़ी-बड़ी बातें कर लोगों को झांसा दिया करते हो, तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर।

31. दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है : (एक बार हानि उठाने वाला सावधान हो जाया करता है) – सोना दुगना करने का झांसा देकर जबसे गोपीनाथ ठगा गया है, तबसे अपने-पराए किसी पर भी विश्वास नहीं करता। सच ही कहा गया है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है।

32. दूर के ढोल सुहावने : (दूर की वस्तु सबको अच्छी लगती है) – बड़ा नाम सुनते थे महात्मा का, आखिर लाखों रुपये ठगकर भाग गए। कहा भी है, दूर के ढोल ही सुहावने लगा करते हैं।

33. धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का: (कहीं का न रहना) – इस चुनाव में दल से नाता तोड़ कल्याण ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा और हार गए ? अब उनकी दशा हो गई है – धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का।

34. नौ नकद न तेरह उधार : (उधार से कम नकद अच्छा) – अपनी दुकान पर तो इस बात का ध्यान रखकर हर वस्तु बेची जाती है नौ नकद न तेरह उधार!

35. नाच न जाने आँगन टेढ़ा : ( बहानेबाजी, काम न आना) – जब कमलेश से मैंने एक सवाल समझाने को कहा, तो वह ‘अभी समय नहीं, थोड़ी देर बाद आना’ जैसी बातें करके यह कहावत सच्ची करके दिखाने लगा कि नाच न जाने आँगन टेढ़ा।

36. नेकी कर कुएँ में डाल : (उपकार करके बदले में कुछ लेने की इच्छा न करना) – नेकी कर और कुएँ में डाल जैसी महत्त्वपूर्ण बातें भारतीय महापुरुष ही कह सकते हैं।

37. जाके पाँव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई : (मुक्तभागी ही दूसरे का दुःख समझ सकता है) – इतनी महँगाई में जनसाधारण कैसे जी रहा है, नेता लोग कैसे समझें, जाके पाँव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई।

38. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : (किसी वस्तु का महत्त्व न समझने वाला) – तुम जैसे पैसों के लिए पागल होने वाले को कविता के आनंद का क्या पता, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।

39. बीती ताहि बिसार के आगे की सुधि लेय : (बीती बातें भुला भविष्य के भले के लिए सावधानी आवश्यक) – अभी तक मौज-मस्ती में कितना कुछ बिगाड़ चुके हो, सो बीती ताहि बिसारकर आगे की सुध लो, ताकि बाल-बच्चों को ठोकरें न खानी पड़ें।

40. बेकार से बेगार भली : (खाली बैठे रहने से कुछ भी करते रहना ही उचित) – जब तक अच्छी नौकरी मिल नहीं जाती, तब तक तो इसे करते ही रहो, कहा भी तो गया है कि बेकार से बेगार भली।

41. भागते भूत (चोर) की लंगोटी ही सही : (कुछ न मिलने वाले स्थान से थोड़ा मिलना भी अच्छा) – अपने महाकंजूस चाचा से सौ रुपये माँगे; पर उन्होंने केवल बीस ही दिए। मैंने यह सोचकर इतने ले लेना ही उचित समझा कि चलो, भागते भूत (चोर) की लंगोटी ही सही।

42. भैंस के आगे बीन बजाना : (मूखों को समझाने का बेकार प्रयास करना) – आखिर सुरेश को तुम्हारे समझाने पर भी कुछ समझ नहीं आया तभी, तो आज जेल की हवा खा रहा है। उसे समझाना तो भैंस के आगे बीन बजाने जैसा ही बेकार है।

43. मुख में राम-राम, बगल में छुरी : (मन में भेद या शत्रुता; पर ऊपर से अपनापन) – उसके मुख में चाहे राम-राम है: पर बगल में छुरी लिए घूमा करता है, इसलिए उससे सावधान और दूर रहना ही अच्छा है।

44. बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ ते खाए : (जैसा करना, वैसा ही फल मिलना) – अब धीरज रखो और आगे के लिए संभल जाओ, तभी कुछ करने योग्य हो सकोगे। याद रखो, बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ ते खाए ।

45. लातों के भूत बातों से नहीं मानते : (दुष्ट डर से ही सीधे रहा करते हैं) – समझाने-बुझाने पर तो उसने पिता का कहना माना नहीं; अब जब उन्होंने संपत्ति के अधिकारों से वंचित कर दिया, तो अपने किए पर रोता फिरता है। सच ही कहा गया है कि लातों के भूत बातों से नहीं माना करते।

46. साँच को आँच नहीं : (सच्चा निर्भय रहता है) – हर तरह से निरपराध एवं कर्तव्यपरायण रहकर मैं तो बस, इस बात पर ही विश्वास रखता हूँ कि साँच को आँच नहीं।

47. सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े : (कार्य शुरू होते ही विघ्न पड़ने लगना) – बैंक से कर्ज लेकर सुभाष ने धंधा आरंभ किया था बाढ़ ने सब कुछ बहा दिया है, सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ गए हैं बेचारे पर।

48. साँप भी मर जाए लाठी भी न टूटे : (बिना हानि काम हो जाए) – अच्छी तरह सोच-विचार कर कोई कार्य करो जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

49. हाथ कंगन को आरसी क्या : (प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण ज़रूरी नहीं) – मेरी बातों पर विश्वास नहीं, तो स्वयं सोमेश से बातकर देखो। मैं सच कह रहा हूँ कि झूठ, स्वयं समझ जाओगे। भई, हाथ कंगन को आरसी क्या?

50. हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और : (कहने-करने में अंतर होना) – उसके सिर पर खादी टोपी देख और मुख से गाँधी का नाम सुनकर ही मत समझ लो कि बड़ा अच्छा आदमी है, हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और हुआ करते हैं?

51. होनहार बिरवान के होत चीकने पात : (सपूत पालने से ही पहचाने जाया करते हैं) – देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार श्री अटलबिहारी वाजपेयी के तर्कों से प्रभावित होकर उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री कहा था। एक बार तो यह कथन सत्य हो ही गया है। ऐसा देखकर ही कहा जाता है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात।