लेख : माँ – वात्सल्य का दूसरा नाम
माँ – वात्सल्य का दूसरा नाम
माँ का प्यार सार्वभौमिक है।
वह आदिम वात्सल्य का प्रतीक है।
माँ दयालु है, परोपकारी है।
वह प्राकृतिक तौर पर ही अपने बच्चे के साथ एक सहज तथा गहरे जुड़ाव में रहती है।
माँ का रिश्ता सबसे पवित्र रिश्ता है।
इसीलिए तो भगवान को मानने वाले लोग उसके बाद माँ को ही दूसरा स्थान देते हैं।
मातृत्व को यदि वृहद् अर्थ में लें तो इसका सीधा सा अर्थ है प्यार की पवित्रता।
इस पवित्रता में से ही शक्ति, करूणा, वात्सल्य, समर्पण तथा आराधना जन्म लेते हैं।
यही गुण माँ तथा बच्चे को एक प्रगाढ़ रिश्ते में बांधते हैं।
माँ की मौजूदगी में बच्चा सहज महसूस करता है।
वह शरारतें करता है, खेलता है, माँ को तंग करता है।
इसके विपरीत माँ उसका ध्यान रखती है, उसे दूध पिलाती है, नहलाती है, इस बात को सुनिश्चित बनाती है कि वह सहज रहे।
ये सारे कार्य चाहे थका देने वाले हैं फिर भी वह इन्हें पूरा करती है।
माँ की भूमिका में माँ बाल गणेश के लिए माता पार्वती है, शरारती श्री कृष्ण के लिए मैय्या यशोदा है।
गणेश, कृष्ण व राम को ध्याने से पूर्व माँ पार्वती, यशोदा व कौशल्या को प्रणाम करना चाहिए।
शाश्वत प्रणाम करना चाहिए, उन नारियों को जिन्होंने महान सपूतों को जन्म दिया।