लेख : जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे
हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का फाइनल मैच भोपाल की टीम के साथ चल रहा था, लेकिन एक-एक कर हमारी टीम के लगातार तीन खिलाड़ियों के आउट होने पर मैच बराबरी पर चल रहा था। अंत में ऐसा समय आया जब हमारी टीम को जीतने के लिए तीन गेंदों में चार रन बनाने थे। मैदान में, मैं और एक गेंदबाज राहुल बल्लेबाजी कर रहे थे तथा राहुल के लिए गेंद फेंकी जानी थी। हमारी टीम बहुत घबरा रही थी कि राहुल कहीं घबराकर ऐसा शॉट न लगा दे कि आउट हो जाए। वहीं सामने वाली टीम किसी भी तरह उसे आउट करने या कम से कम गेंद खाली जाने देने के लिए दृढ़ संकल्प थी। दोनों टीमों के कोच अपनी-अपनी टीम का हौंसला बढ़ाने में जुटे थे। तीन में से पहली गेंद पर सामने वाली टीम ने एल. बी. डब्ल्यू. आउट की जोरदार अपील की जिसके दबाव में राहुल रन न ले सका। अब केवल दो गेंदें बची थीं।
दर्शकों में भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। मैच अपने रोमांचक मोड़ पर था। दर्शक अपनी-अपनी टीम के जीत की प्रार्थना कर रहे थे। जैसे ही दूसरी गेंद फेंकी जाने लगी, दर्शक सांस रोककर बैठ गए। कोई भी नहीं बता सकता था कि कौन जीतेगा? क्योंकि क्रिकेट में कभी-भी कुछ भी हो सकता है। दूसरी गेंद पर राहुल ने दौड़कर एक रन ले लिया। अब जीतने के लिए एक गेंद पर तीन रन की जरूरत थी। बल्लेबाजी करने की मेरी बारी थी। चूँकि मैं टीम का कप्तान था अतः मुझ पर बहुत दबाव था। मेरे कानों में कोच के शब्द गूँजने लगे कि जी भरकर खेलो, पर दिमाग से खेलो। महसूस करो कि ये मेरे जीवन के सबसे यादगर पल हैं। आखिरी गेंद पर मैंने तनावरहित होकर बैट हवा में लहराया और सीधे चौका। कुछ ही पलों में टीम का हीरो बन गया। सारा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। हमारी टीम के खिलाड़ी मैच जीतते ही मैदान पर आ गए। उनके कंधों पर सवार मैं अपने जीवन के सबसे यादगार पल को, भगवान को धन्यवाद देता महसूस कर रहा था।