लघुकथा : ‘वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे’
एक बार मैं और मेरा दोस्त अमित समुद्र के किनारे बैठे थे। यद्यपि अमित मुझसे उम्र में काफी बड़ा था परन्तु हम दोनों में गहरी मित्रता थी। हर रविवार छुट्टी के दिन हम समुद्र तट पर जाते और कुछ देर तैरते। अमित ठीक-ठाक तैर लेता था जबकि मैं अभी गहरे पानी में तैरना नहीं सीख पाया था। तभी हमने एक लड़का जिसकी उम्र लगभग दस वर्ष थी, को बार-बार पानी के पास जाते और फिर डरकर वापस देखा। उसे देख हमें हँसी आ गयी। फिर हम वहाँ से उठकर भेलपूरी लेने चले गये। लौटकर आये तो देखा एक आदमी किनारे खड़ा ‘बचाओ – बचाओ’ चिल्ला रहा था। समुद्र की तरफ देखने पर पता चला कि यह वही बालक है जिसे हमने थोड़ी देर पहले समुद्र के पास खेलते देखा था। मुझे गहरे पानी में तैरने का अनुभव न था लेकिन तभी अमित ने अपनी कमीज उतार कर पानी में छलांग लगा दी। तब तक काफी भीड़ भी इकट्ठी हो गयी। हमने फोन कर एंबुलेंस भी मँगवा ली, लेकिन अमित और वह लड़का कहीं दिखाई नहीं रहे थे। अनिष्ट की आशंका से मेरा दिल जोर से धड़कने लगा तभी हमने उन्हें किनारे की तरफ आते देखा। वह बच्चा सही सलामत था, लेकिन अमित किनारे तक पहुँचते-पहुँचते बेहोश होगया। तुरन्त हम उसे अस्पताल ले गये। कुछ देर बाद अमित को होश आ गया। अमित को होश में देख मेरी जान में जान आ गयी। तक अमित व मेरे माता-पिता भी वहाँ पहुँच गये थे। सारी बात जानकर सबने अमित की प्रशंसा कि उसने अपनी जान जोखिम में डालकर उस बच्चे की मदद की।
सच ही कहा है – “वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”
सीख – वास्तव में वही मनुष्य है जो दूसरों की संकट में सहायता करे। अतः हमें भी परोपकार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाना चाहिए।