लघुकथा : जान बची तो लाखों पाए


‘जान बची तो लाखों पाए’ विषय पर एक लघुकथा लिखिए।


एक बार हमें स्कूल में सभी विषयों में बहुत सारा गृहकार्य मिला। घर आने पर मैने हाथ-मुँह धोये, खाना खाया और फिर खेलने चला गया। सोचा शाम को बैठकर सारा गृहकार्य फुर्ती से कर लूँगा। वहाँ मैदान में खेलते हुए मुझे मजा आ रहा था। शाम होते ही मुझे गृहकार्य करने की याद हो आयी। मैं भागा – भागा घर पहुँचा। भागने की वजह से मैं काफी थक गया। इस कारण मैं पानी पीकर पसीना सुखाने पंखे के नीचे आँखें बंद कर बैठ गया। ठंडी हवा से मुझे आराम मिला। इससे मेरी आँख लग गयी। एक घंटा बाद मैं चौंककर उठा। उस समय साढ़े सात बज रहे थे। मैं तुरन्त अपने कमरे में गया और पढ़ने बैठ गया। पर जैसे ही मैंने काम करना शुरू किया वैसे ही माँ ने मुझे खाने के लिए बुला लिया। खाना बहुत स्वादिष्ट था पर डर के मारे मैंने हड़बहाहट में शीघ्र ही खाना खत्म किया और कमरे में आकर अपना गृहकार्य शुरू किया। तभी मेरी बड़ी बहन, जीजाजी अपने बच्चों के साथ हमारे घर आये। मैं सबसे अच्छी तरह मिला। दीदी मेरे लिए एक उपहार लाई थी। ऊपर से तो मैं प्रसन्न था लेकिन मन ही मन मुझे पछतावा हो रहा था कि गृहकार्य किये बिना मुझे खेलने नहीं जाना चाहिए था। रात दस बजे मेहमानों के जाने के बाद मैं गृहकार्य में जुट गया। रात के बारह बजे मुझे जोर की नींद आने लगी पर मैं अपनी नींद से लड़ते हुए काम करता रहा। पर कब मेरी आँखें बन्द हो गई और मैं सो गया, इसका मुझे पता ही नहीं चला। जब मैं सुबह उठा तो डर के मारे स्कूल न जाने का विचार आया लेकिन तभी मैंने सोचा कि अपनी एक गलती को छुपाने के लिए दूसरी गलती करने के बजाय हमें अपनी गलती स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए। मैं नहा धोकर तैयार होकर रसोई में नाश्ते के लिए गया तो माँ मुझे देखकर हँसने लगीं पूछने पर उन्होंने याद दिलाया कि आज रविवार है और रविवार को छुट्टी के दिन मैं स्कूल जाने को क्यों भला तैयार हो गया हूँ। यह सुनते ही मुझे एक कहावत याद आई ‘जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए।”

सीख – अपना काम समय पर करना चाहिए।