CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)EducationHindi Grammar

रचना के आधार पर वाक्य – रूपांतर


वाक्य


जब भी हमें अपने मन की बात दूसरों तक पहुँचानी होती है या किसी से बातचीत करनी होती है तो हम वाक्यों का सहारा लेकर ही बोलते हैं। यद्यपि वाक्य विभिन्न शब्दों (पदों) के योग से बनता है और हर शब्द का अपना अलग अर्थ भी होता है, पर वाक्य में आए सभी घटक परस्पर मिलकर एक पूरा विचार या संदेश प्रकट करते हैं। वाक्य छोटा हो या बड़ा, किसी-न-किसी विचार या भाव को पूर्णतः व्यक्त करने की क्षमता रखता है। अतः

ऐसा सार्थक शब्द समूह, जो व्यवस्थित हो तथा पूरा आशय प्रकट कर सके, वाक्य कहलाता है।

‘वाक्य’ में निम्नलिखित बातें होती हैं :

1. वाक्य की रचना शब्दों (पदों) के योग से होती है।

2. वाक्य अपने में पूर्ण तथा स्वतंत्र होता है।

3. वाक्य किसी-न-किसी भाव या विचार को पूर्णतः प्रकट कर पाने में सक्षम होता है।

उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति कहता है ‘सफ़ेद जूते‘ तो यह वाक्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यहाँ पर किसी ऐसे विचार या संदेश का ज्ञान नहीं होता जिसे वक्ता बताना चाहता हो। जबकि ‘मुझे सफ़ेद जूते खरीदने हैं‘ एक पूर्ण वाक्य है, क्योंकि यहाँ ‘सफ़ेद जूतों’ के विषय में बोलने वाले का भाव, स्पष्टतः प्रकट हो रहा है।


वाक्य के अंग


प्रत्येक वाक्य के दो खंड अथवा अंग होते हैं-कर्ता और क्रिया। कर्ता और क्रिया के विस्तार को ‘उद्देश्य और विधेय’ कहा जाता है।

1. उद्देश्य : वाक्य में कर्ता या उसके विस्तार या जिस व्यक्ति या वस्तु के बारे में कहा जाए, उसे ‘उद्देश्य’ कहते हैं। मुख्य रूप से कर्ता ही वाक्य में उद्देश्य कहलाता है।

‘मोहन बाज़ार जा रहा है।’

इस वाक्य में जो कुछ भी लिखा गया है, वह मोहन के विषय में है। इसलिए इस वाक्य में मोहन ही वाक्य का उद्देश्य है।

2. विधेय – वाक्य में कर्ता या उद्देश्य के बारे में जो कुछ भी कहा जाए उसे ‘विधेय’ कहते हैं। साधारणतः कर्ता उद्देश्य होता है और क्रिया विधेय होती है।

‘मोहन बाज़ार जा रहा है।’

इस वाक्य में ‘मोहन’ उद्देश्य है, इस बात को पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है। वाक्य का शेष अंश ‘बाज़ार जा रहा है’ मोहन के बारे में कहा गया है, इसलिए यह इस वाक्य का विधेय है। कुछ अन्य उदाहरण :

उद्देश्य – विधेय

उद्देश्य और विधेय का विस्तार


वास्तव में केवल क्रिया ही विधेय कही जाती है और क्रिया का कर्ता उद्देश्य कहलाता है किंतु जो शब्द उद्देश्य और विधेय की विशेषता प्रकट करते हैं अथवा उनके अर्थ में वृद्धि करते हैं, वे विस्तारक कहलाते हैं।


उद्देश्य के विस्तारक

उद्देश्य के अर्थ में विशेषता प्रकट करने के लिए जो शब्द अथवा वाक्यांश उसके साथ जोड़े जाते हैं, वे उद्देश्य-विस्तारक कहलाते हैं।

जैसे :

1. काली गाय घास चरती है।

2. कमल का भाई मूर्ख है।

3. पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी विदेश चले गए।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘गाय’, ‘भाई’ तथा ‘शर्मा जी’ उद्देश्य हैं तथा ‘काली’, ‘कमल का’ तथा ‘पड़ोस में रहने वाले’ तीनों क्रमशः उन तीनों उद्देश्यों के अर्थ में वृद्धि करने के कारण उद्देश्य के विस्तारक हैं। ऊपर के वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ने पर यह भी पता चलता है कि उद्देश्य-विस्तार शब्द प्रायः विशेषण, संबंधकारक या विशेषण वाक्य होते हैं। प्रथम वाक्य में ‘काली’ शब्द विशेषण है, दूसरे वाक्य में ‘कमल का’ संबंध कारक है और ‘पड़ोस में रहने वाले’ वाक्यांश है जो कि विशेषण की तरह प्रयुक्त हुआ है।


विधेय के विस्तारक

विधेय के अर्थ में विशेषता लाने वाले शब्द विधेय-विस्तारक कहलाते हैं। जैसे :

1. घोड़ा तेज दौड़ रहा है।

2. राघव खाकर सो जाएगा।

3. भावेश परिश्रमी है।

4. विदेशियों ने भारत पर आक्रमण कर दिया।

ऊपर लिखे वाक्यों में ‘दौड़ रहा है’, ‘है’, ‘जाएगा’ तथा ‘कर दिया’ ये चारों विधेय हैं; तथा ‘तेज’, ‘परिश्रमी’ ‘खाकर’, ‘भारत पर’ तथा ‘आक्रमण’ ये पाँचों विधेय-विस्तारक हैं। इनमें ‘तेज’ क्रिया-विशेषण ‘परिश्रमी’ पूरक, ‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया, ‘भारत पर’ अधिकरण कारक तथा ‘आक्रमण’ शब्द कर्म है। यही विधेय-विस्तारक हैं।

इन विधेय-विस्तारक शब्दों पर विचार करने से यह स्पष्ट होता है कि क्रिया-विशेषण पूरक, पूर्वकालिक क्रिया, करण से लेकर अधिकरण तक के कारकों में से कोई-सा कारक और सकर्मक क्रिया का कर्म ही प्रायः विधेय-विस्तारक हो सकते हैं।