मौखिक अभिव्यक्ति


मौखिक अभिव्यक्ति (Oral Expression)


जैसा कि पहले बताया जा चुका है, भाषा संप्रेषण का माध्यम है। इसके दो रूप हैं-मौखिक और लिखित। समाज में किसी भी भाषा के मौखिक रूप का महत्त्व सर्वाधिक होता है। सामान्यतः भाव एवं विचार-संप्रेषण के लिए मनुष्य भाषा के मौखिक रूप का ही प्रयोग करते हैं।

बच्चा जब सर्वप्रथम भाषा सीखता है तो वह उसके मौखिक रूप का ही प्रयोग करता है, उसे सिखाया भी मौखिक रूप से ही जाता है, पर यह भाषा का बहुत ही साधारण रूप होता है। भाषा का विशेष ज्ञान या भाषा का कौशल के रूप में विकास, विशेष प्रयास ही दे सकता है। भाषा के अध्ययन का उद्देश्य उसके चार कौशल-श्रवण, पठन, वाचन और लेखन ही होता है, जिनमें से वाचन और श्रवण का संबंध भाषा के मौखिक रूप से है। भाषा सीखते समय इन दो कौशलों पर भी विशेष ध्यान देना अपेक्षित है।

भाषा की मौखिक-अभिव्यक्ति के विभिन्न प्रकार होते हैं – कुछ औपचारिक और कुछ अनौपचारिक। इनमें से कुछ हैं- वार्तालाप, वाद-विवाद, भाषण, कविता पाठ, कथा वाचन आदि।

इन कौशलों का विकास करने के लिए अभ्यास अपेक्षित है। अभ्यास किया जाए पर कैसे? आरंभ में लिखकर और उसे मन में बिठाकर, फिर कुछ बिंदुओं को याद करके और उनके आधार पर बोलकर। अभ्यास करने के लिए कुछ सामान्य निर्देशों को ध्यान में रखा जा सकता है।

यह विशेष ध्यान देने योग्य है कि ये निर्देश ही हो सकते हैं, निश्चित नियम नहीं। इनका पालन करके अपनी अभिव्यक्ति को अधिक सुंदर एवं संप्रेषणीय बनाया जा सकता है, किंतु शब्दों को बिल्कुल वैसा ही सीखकर उनका ज्यों-का-त्यों प्रयोग करना अपेक्षित नहीं। वस्तुतः ऐसा प्रयास करने पर भी यह संभव नहीं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान होती है, अपना निजी व्यक्तित्व और उसी के अनुरूप अपनी विशिष्ट अभिव्यक्ति होती है। इस विशिष्टता को क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए, क्योंकि यही एक व्यक्ति को दूसरे से भिन्न दिखाती है। यह न होने पर सभी रिकार्ड की तरह एक जैसा बोलते दिखाई देंगे। सामान्य बातचीत में भी जैसे व्यक्ति का व्यक्तित्व झलकता है, वैसे ही मौखिक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों में व्यक्तित्व की विशिष्टता झलकनी चाहिए।

किसी भी भाषा में अभिव्यक्ति के लिए यह अपेक्षित होता है कि उसी भाषा में सोचा भी जाए। आज विभिन्न कारणों से हिंदी भाषा के विद्यार्थियों की यह विडंबना है कि वे सोचते तो हैं अंग्रेज़ी में और लिखना बोलना चाहते हैं हिंदी में। परिणाम यह होता है कि या तो उन्हें सही शब्द नहीं मिल पाते या फिर वे अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं, जिससे हिंदी भाषा के स्वरूप को क्षति पहुँचती है। अभ्यास से ही इसे दूर किया जा सकता है, जिसके लिए सरल से कठिन की ओर जाना चाहिए। पहले यह देखें कि आप क्या बोलते हैं, फिर यह कि उसमें क्या परिवर्तन किया जा सकता है और अच्छी हिंदी में कैसे बोला जा सकता है। उदाहरणत:

1. कल ये lesson read करके आना है।

कल यह पाठ पढ़कर आना है।

2. मेरे father आए हैं।

मेरे पापा आए हैं।

मेरे पिता जी आए हैं।


श्रवण (सुनना)

हम सब निरंतर ध्वनियाँ सुनते रहते हैं, किंतु विशेष रूप से सुनकर अर्थग्रहण करने के लिए अभ्यास की अपेक्षा होती है। वाचन संबंधी सभी गतिविधियों को करते समय श्रवण का अभ्यास भी किया जा सकता है। इसके लिए यह अपेक्षित होता है कि श्रोता ध्यानपूर्वक सुने, सुनकर अर्थ ग्रहण करे और फिर किसी भी प्रकार से अपने उस ज्ञान का परिचय दे सके। इसके लिए छात्रों को विभिन्न प्रकार से अभ्यास कराया जा सकता है।

1. (क) सुबह की प्रार्थना सभा में दिए गए किसी भाषण से संबंधित प्रश्न ।

(ख) प्रार्थना सभा में प्रस्तुत विचार क्या था?

(ग) क्या विशेष सूचनाएँ दी गई थीं?

2. अध्यापिका ने कक्षा में क्या संदेश भिजवाया था?

3. कक्षा में पिछले दिन क्या निर्देश दिए गए थे?

4. कोई कहानी या भाषण सुनकर छात्र उसे समझ पाएँ और उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर दे पाएँ। यह ध्यान देने योग्य है कि ये अंश छात्रों के स्तर के होने चाहिए, उनकी क्षमता के अनुरूप कठिनाई का स्तर होना चाहिए और ऐसे विषयों का चुनाव किया जाना चाहिए, जो छात्रों के जीवन से सीधे जुड़ते हों। एक ही कक्षा में होते हुए भी छात्रों में जो विभिन्नताएँ होती हैं, उनका भी ध्यान रखना चाहिए।

परीक्षक के द्वारा पढ़े गए वार्तालाप, भाषण या कविता को ध्यान से सुनें और दिए गए प्रश्नों के उचित शीर्षक दें। परीक्षक के द्वारा किसी भी पंक्ति को दोहराया नहीं जाएगा। आवश्यकता है पूरा ध्यान केंद्रित कर परीक्षक को सुनकर प्रश्नों के उत्तर देने की।


वार्तालाप को सुनकर उससे संबंधित दिए गए प्रश्नों के उत्तर देना :

अलीबेग : सरदार सच फरमाते हैं।

जफ़र : और फिर, दो दिनों के बाद इतना अच्छा खाना नसीब हुआ है। भूख-प्यास से बुरा हाल है। अगर इस तरह मरना ही है, तो मिठाई खाकर क्यों न मरें !

अलीबेग : सरदार ने क्या बात कही है! मिठाई खाकर क्यों न मरें, वाह… वाह…।

मुबारक : सच बात है सरदार! भूख से तो मरना ही है तो यह चीज़ फिर क्यों छोड़ी जाए!

जफ़र : इसीलिए मैं खा रहा हूँ। (खाते हुए) वाह, क्या कहना है! यहाँ के लोग मिठाइयाँ बनाना भी खूब जानते हैं।

अलीबेग : सरदार, मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि वे लोग हम लोगों के लिए ही ये मिठाइयाँ बनाकर छोड़ गए हैं।

मुबारक : ये कैसे?

अलीबेग : ये ऐसे कि उन्होंने यह समझा होगा कि ये मिठाइयाँ खाकर हम लोगों का गुस्सा कम हो जाएगा। लूट-मार कम करेंगे।

जफ़र : (हँसते हुए) ह ह ह ह ह ह ! हम लोगों का गुस्सा कम हो जाएगा! लूट-मार कम करेंगे! (सब लोगों की सम्मिलित हँसी)

नेपथ्य में : (तीव्र स्वर में) चुप रहो, कमबख्तो!

(तैमूरलंग का प्रवेश। वह लँगड़ाते हुए आगे बढ़ता है। उसे देखते ही सब चौंक पड़ते हैं। मिठाइयाँ जमीन पर फेंककर फ़ौजी ढंग से तनकर खड़े हो जाते हैं। सन्नाटा छा जाता है। तैमूरलंग बारी-बारी से तीनों को घूरता हुआ आगे बढ़ता है)

तैमूर : (तीव्र स्वर में) बदबख्तो ! इसी तरह तुम हिंदुस्तान की दौलत गाजी तैमूर के खजाने में भरोगे? जब तुम्हें कत्ल करना चाहिए, तब तुम आराम से तख्त पर बैठते हो। जब तुम्हें जवाहरात ढूँढ़ने चाहिए, तब तुम नाश्ता करते हो और जब तुम्हें धावा बोलना चाहिए, तब तुम लोग मिलकर कहकहे लगा रहे हो ! जवाब दो। (कोई कुछ नहीं बोलता, निस्तब्धता)

तैमूर : (फिर तीव्र स्वर में) मैंने अफगानिस्तान के बाद हिंदुस्तान का रुख इसलिए किया था कि मेरे सिपाही दौलत लूटने के बदले आराम से खाना ढूँढ़ते फिरें! मैं बिना जतलाए देखना चाहता था कि तुम किस तरह मेरे हुक्म को अंजाम दे रहे हो। इसीलिए मैंने अपने सब सिपाहियों को बाहर छोड़ दिया है। मैं देखता हूँ कि तुमने मेरे जिहाद को चटोरेपन का तमाशा बना दिया है। तुम यहाँ मौज से खाना खाओ और गाजी तैमूर तीन दिनों से भूखा रहे और रात-दिन हुक्म देता रहे! मैंने तुम्हें क्या हुक्म दिया था?

प्रश्न 1. जफ़र सामने रखी मिठाई क्यों नहीं छोड़ना चाहता था?

उत्तर – दो दिनों से उन्हें खाने को कुछ भी नहीं मिला था। अतः जफ़र सामने रखी मिठाई को छोड़ना नहीं चाहता था।

प्रश्न 2. अलीबेग जफ़र को क्या कहकर संबोधित करता है?

उत्तर – अलीबेग जफ़र को सरदार कहकर संबोधित करता है।

प्रश्न 3. अलीबेग सामने रखी मिठाई से संबंधित क्या सोच रखता है?

उत्तर – मिठाइयाँ यहाँ इसलिए रखी गई हैं ताकि हम इन्हें खाए, हमारा गुस्सा कम हो और हम लूट-मार कम करें।

प्रश्न 4. तैमूरलंग क्या कहकर भीतर प्रवेश करता है?

उत्तर – चुप रहो, कमबख्तो !

प्रश्न 5. तैमूर के आते ही सभी सिपाहियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर – चारों ओर सन्नाटा छा गया।

प्रश्न 6. तैमूर सभी सिपाहियों से क्यों नाराज़ है?

उत्तर – सभी उसके हुक्म को अंजाम न देकर सिर्फ खाने के पीछे पड़े हैं।

प्रश्न 7. तैमूर ने अफगानिस्तान के बाद कहाँ का रुख किया?

उत्तर – तैमूर ने अफगानिस्तान के बाद हिंदुस्तान का रुख किया।

प्रश्न 8. तैमूर बिना सूचना के क्यों आया था?

उत्तर – तैमूर देखना चाहता था कि सभी उसके हुक्म को किस प्रकार अंजाम दे रहे हैं।


कविता पाठ सुनना और उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर देना :

मैंने पूछा शहर में एक ग्रामीण से….

आखिर क्यूँ जाते हो शहरों की ओर,

प्रतिउत्तर मिलता है…..

गाँवों में न शिक्षा है, न काम है,

प्रकृति भी नहीं देती साथ है,

पेट भरने की आशा व

नए समय के नए सपनों को

सँजोने के लिए गाँव के लोग….

अगर गाँव यूँ ही खाली होते रहे

तो हमारी सभ्यता व संस्कृति

लुप्त हो जाएगी,

ढहती दीवारों की खिड़कियों से

बह जाएगी मानवता;

कौन जोड़ेगा लोकगीत ?

कौन करेगा त्योहारों का स्वागत?

खेतों की रौनक भी तो न रहेगी।

सुनो, मेरे गाँव के गोपालो!

गाँव को खाली कर

न जाओ शहरों की ओर।


प्रश्न 1. कवि ने किससे प्रश्न किया?

उत्तर – ग्रामीण से।

प्रश्न 2. कवि ने क्या प्रश्न किया?

उत्तर – आखिर क्यों जाते हो शहरों की ओर।

प्रश्न 3. गाँव की आज स्थिति क्या है?

उत्तर – गाँव में शिक्षा और काम दोनों ही नहीं है। प्रकृति भी साथ नहीं देती है कि खेती कर ली जाए।

प्रश्न 4. गाँवों के खाली होने पर क्या होगा?

उत्तर – हमारी सभ्यता व संस्कृति लुप्त हो जाएगी। मानवता भी समाप्त हो जाएगी।

प्रश्न 5. हमारे गाँवों की क्या विशेषता है?

उत्तर – गाँवों में त्योहार मनाए जाते हैं तथा खेतों में रौनक रहती है।

प्रश्न 6. कवि गाँव के लोगों से क्या प्रार्थना कर रहा है?

उत्तर – कवि गाँवों के लोगों से प्रार्थना कर रहा है कि वे शहर की ओर न जाएँ।

प्रश्न 7. लोग गाँव से शहरों की ओर क्यों जाते हैं?

उत्तर – नए समय के नए सपनों को संजोने के लिए लोग गाँवों से शहरों की ओर जाते हैं।


लेख सुनना तथा उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर देना :

जहाज पर मेरी पोशाक लोगों के कौतूहल का केंद्र बनी रही। एक पारसी दंपत्ति और एक अंग्रेज़ सज्जन मेरी और विशेष आकर्षित हुए। गांधी जी की खादी और शाकाहार के संबंध में बातचीत करने में समय आसानी से कट गया।

रास्ते में मुझे ज्ञात हुआ कि जब तक जहाज स्वेज नहर से गुजरता है, थॉमस कुक कंपनी की ओर से ऐसा प्रबंध रहत है कि जो यात्री चाहे वह मोटरगाड़ी द्वारा जाकर कैरो नगर देखकर आ सकता है। मैंने यह देख आना अच्छा समझा। मेरे साथ कुछ और यात्रियों ने भी वहाँ जाने का प्रबंध कर लिया था। हम लोग सवेरे पाँच बजे जहाज से उतरकर मोटरगाड़ी पर कैरो चले गए। कैरो पहुँचने पर मुँह-हाथ धोने और नाश्ता करने के लिए हमें एक होटल में ले जाया गया। फिर हम कैरो का अजायबघर देखने गए। वहाँ पिरामिडों की खुदाई से निकली वस्तुएँ अब तक सुरक्षित रखी गई हैं। प्राचीन मिस्र के कितने ही बड़े नामी और प्रतापी बादशाहों के ममी अर्थात् शव जो पिरामिडों से निकले हैं, वहाँ सुरक्षित रखे गए हैं। अब देखने में वे काले पड़ गए हैं, पर उनके चेहरे और हाथ-पैर ज्यों के त्यों हैं। वे जिस कपड़े में लपेटकर गाड़े हुए थे, वह कपड़ा भी अभी तक वैसा ही लिपटा हुआ है। वह कपड़ा बहुत ही बारीक हुआ करता था। कहते हैं, उन कपड़ों का निर्यात भारतवर्ष से ही हुआ करता था। उन दिनों वहाँ के निवासियों का विश्वास था कि आराम के सभी सामान यदि निर्जीव शरीर के साथ गाड़ दिए जाएँ, तो परलोक में भी उन सामानों से वह आराम पा सकता है। इसी विश्वास के अनुसार, पिरामिडों के अंदर, शव के साथ सभी आवश्यक वस्तुएँ गाड़ी जाती थीं। पहनने के कपड़े और गहने, बैठने के लिए चौकी, खाने के लिए अन्न, श्रृंगार का सामान, सवारी के लिए रथ और नाव तक रखे जाते थे। उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि उस समय भी लोग सोने का व्यवहार जानते थे।

सुना है कि इसी प्रकार की खुदाई में मोहनजोदड़ो (सिंध) में जो गेहूँ निकला है, वह बो देने पर उग गया। संग्रहालय की वस्तुओं और विशेषकर प्रतापी राजाओं के शव देखकर यह मालूम होने लगता है कि हम जो कुछ अपने बड़प्पन के मद में करते हैं, वह सब कितना तुच्छ और अस्थायी है।

प्रश्न 1. जहाज़ पर क्या वस्तु कौतूहल का केंद्र-बिंदु बनी रही?

उत्तर – लेखक की पोशाक जहाज पर कौतूहल का केंद्र-बिंदु बनी रही।

प्रश्न 2. सफर का समय आसानी से कैसे कट गया?

उत्तर – खादी और शाकाहार के संबंध में बातचीत करते हुए सफर का समय आसानी से कट गया।

प्रश्न 3. जहाज़ पर थॉमस कुक कंपनी के द्वारा क्या प्रबंध किया गया था?

उत्तर – मोटरगाड़ी द्वारा कैरो नगर देखकर आने का प्रबंध किया गया था।

प्रश्न 4. लेखक कैरो में क्या देखने गए?

उत्तर – अजायबघर।

प्रश्न 5. ममी पर लिपटा कपड़ा कैसा हुआ करता था?

उत्तर – बहुत ही बारीक।

प्रश्न 6. किस विश्वास के साथ पिरामिडों के अंदर शव के साथ आवश्यक वस्तुएँ भी गाड़ी जाती थीं?

उत्तर – ऐसी मान्यता थी कि परलोक में भी उनसे आराम पा सकते हैं।

प्रश्न 7. संग्रहालय की वस्तुओं व प्रतापी राजाओं के शव देखकर क्या मालूम होने लगता है?

उत्तर – सब कुछ कितना तुच्छ और अस्थायी है।

प्रश्न 8. खुदाई किस शहर में की गई थी?

उत्तर – मोहनजोदड़ो (सिंध) में।