मैं स्त्री हूं
मैं स्त्री हूं
मैं स्वतंत्र हूं
मैं सार्थक हूं
मैं ही जीवन की धारक हूं
हर पल जलती एक अग्नि में
हर पल तपती एक ज्वाला में
मैं अगम अनादि साधक हूं
ना चाह है तेरे भावों की
ना आस है तेरी राहों की
मैं चल सकती हूं हर पथ पे
मैं जीवन पथ की धावक हूं
मैं बेटी हूं, पत्नी हूं, मां भी हूं
मैं हर रिश्ते की परछाई
तू नाम भले दे कोई भी
हर भाव में मेरी गहराई
आंखों में चाहे आंसू हों
पर टूट नहीं सकती हूं मैं
मेरा मन लौह की प्रतिमा है
बाहर से केवल भावुक हूं
मैं स्त्री हूं मैं मैं हूं……….
कविता चौबे