मानवीय करूणा की दिव्य चमक : फादर कामिल बुल्के


प्रश्न. मनुष्य बहुत सी बातें भूल जाता है, किन्तु दूर रहकर भी वह अपनी माँ के निस्वार्थ और निश्छल स्नेह को नहीं भूल पाता। संन्यासी फादरबुल्के भी अपनी माँ को नहीं भूल पाते थे। ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : फादर अपनी माँ को बहुत याद करते थे और अकसर उनकी स्मृति में खो जाते थे। उनकी माँ की चिट्ठियां अकसर उनके पास आती थी जिन्हें वे अपने अभिन्न मित्र डॉक्टर रघुवंश को दिखाते थे। भारत में स्थायी रूप से बस जाने के बाद भी वह अपनी मातृभूमि और माँ के स्नेह को नहीं भूल पाए थे। सच है कि माँ का निस्वार्थ प्रेम स्नेह की पराकाष्ठा है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।