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महात्मा बुद्ध


स्वीकृति और समझने की शक्ति


एक बार महात्मा बुद्ध ने अपने एक शिष्य अनिरुद्ध से पूछा कि क्या उसने उस भिखारी को कुछ भोजन दिया है जो बरगद के पेड़ के नीचे बैठता है।

अनिरुद्ध ने जवाब दिया, “जैसे ही मैं उसके पास खाना लेकर जाता हूं, वह मुझे गालियां देने लगता है। इसलिए, मैं उसके पास जाने से बचता हूं और वहां नहीं जाता।”

बुद्ध ने कुछ नहीं कहा। अगले दिन वह स्वयं उस भिखारी को खाना देने गए।

भिखारी ने बुद्ध को भी गाली दी।

अविचलित और शाश्वत, शांत, बुद्ध ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हारे लिए कुछ भोजन लाया हूँ।”

उस आदमी ने फिर से गाली दी।

बुद्ध ने कुछ नहीं कहा; वह वहीं चुपचाप बैठे रहे। कुछ देर बाद उन्होंने भिखारी से पूछा, “बेटा, जब कोई तुम्हें खाना देने की कोशिश करता है तो तुम क्रोधित क्यों हो जाते हो?”

वह आदमी रोने लगा।

उनसे कहा, एक बार एक आदमी ने उसे खाने में जहर मिलाकर दे दिया। वह किसी तरह से बच गया, लेकिन उसे सभी लोगों पर और खासकर उन लोगों पर शक होने लगा जिन्होंने उसे खाना खिलाने की कोशिश की थी।

हमेशा मुस्कुराते रहने वाले बुद्ध ने उस भोजन का एक टुकड़ा खाया जो वह भिखारी के लिए ले गए थे और कहा, “बेटा, इसमें जहर नहीं है। देखो मैंने भी चख लिया है।”

भिखारी ने गाली देना बंद कर दिया और उनसे भोजन स्वीकार कर लिया।

यही है समझने की, स्वीकृति की शक्ति की ओर पहला कदम। और केवल स्वीकृति से ही हर प्रकार से भावनात्मक रूप से शक्ति की प्राप्ति हो हो सकती है।