जिसने मेरे साथ गलत किया, उसके लिए बुरा सोचना सामान्य और स्वाभाविक है। सोचते-सोचते हम कहते हैं भगवान इसको कर्म की सज़ा जरूर देगा। हम भगवान से उसका कुछ बुरा करने को कहते हैं।
हम यह भी सोच सकते हैं कि कोई हिसाब-किताब था, जोकि खत्म हुआ। हमारे पिछले कर्मों का कर्ज चुकता हो गया।
अब मेरा भी बहुत अच्छा चले और इसका भी। किसी के लिए बुरा सोचने की कोई सीमा नहीं होती, उसी तरह अच्छा सोचने की भी कोई सीमा नहीं होती।
जब हम किसी से नफरत करते हैं, तो मन की खुशी गायब हो जाती है। शरीर में कोई न कोई बीमारी लग जाती है।
अगर हम कहें, बात खत्म हुई, क्षमा करो आगे बढ़ो तो शरीर स्वस्थ हो जाएगा।