CBSEEducationNCERT class 10thPunjab School Education Board(PSEB)

मनुष्यता


मनुष्यता – मैथिलीशरण गुप्त


प्रश्न 1. ‘मनुष्यता’ कविता और ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ का केंद्रीय भाव एक ही है। सिद्ध कीजिए।

अथवा

प्रश्न. ‘मनुष्यता’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में समझाइए।

उत्तर – • मनुष्यता कविता – मानव के त्याग, बलिदान, मानवीय एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता, करुणा आदि पर बल देती है।

• ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ का प्रतिपाद्य-मानव और प्रकृति के सामंजस्य, मानव और प्रकृति के अन्य जीवधारियों के मध्य सामंजस्य जिसके अंतर्गत सहानुभूति, सद्भाव, उदारता, प्रेम, त्याग और करुणा पर बल दिया गया है।

• ऊपर दिए गए सभी गुण मनुष्यत्व के गुण हैं।

• उदारता, करुणा, सद्भाव, सहानुभूति गुणों पर दोनों पाठ आधारित हैं

व्याख्यात्मक हल :

‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य में मानवीय गुणों यथा प्रेम, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, उदारता, त्याग आदि को मनुष्य के लिए आवश्यक बताया है। उसने दधीचि, कर्ण, रंतिदेव आदि लोगों के उदाहरण द्वारा दूसरों के लिए जीने की, उनकी सहायता करने की प्रेरणा दी है, वहीं ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में भी लेखक ने प्रकृति, जीवों, मनुष्यों के दुखों के प्रति दुखी होने, उनकी सहायता करने, उनके साथ सामंजस्य बनाने पर जोर दिया है तथा अपनी बात की पुष्टि के लिए तथा लोगों को प्रेरित करने हेतु सुलेमान, नूह, अपने माता-पिता आदि के उदाहरण दिए। अतः दोनों ही पाठों में मानवीय गुणों को अपनाने पर जोर दिया गया है। इससे सिद्ध होता है कि दोनों पाठों का केन्द्रीय भाव एक है। दोनों में उदारता, करुणा, सद्भाव, सहानुभूति जैसे गुणों पर आधारित हैं।

प्रश्न 2. ‘मनुष्यता’ कविता में ‘परोपकार’ के संबंध में दिए गए उदाहरण को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि आपका मित्र परोपकारी है, यह आपने कैसे जाना?

उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘मनुष्यता’ कविता में परोपकार के अनेक उदाहरणों द्वारा परोपकार हेतु प्रेरित किया गया है। कविता में कहा गया है कि हर मनुष्य को दुखियों, वंचितों और जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कर्ण, दधीचि, रंतिदेव आदि के अतुल परोपकार के भाव से प्रेरणा लेनी चाहिए। मुझे अपने मित्र में भी इसी प्रकार से परोपकार के भाव को देखकर बहुत ही खुशी होती है। एक बार मैं और मेरा मित्र किसी दुकान पर खड़े होकर कुछ खा रहे थे। अचानक एक गरीब बुढ़िया ने कहीं से आकर मेरे मित्र के सामने अपनी झोली फैला दी। मेरे मित्र ने अपना सारा खाना उस बुढ़िया की झोली में डाल दिया। यही नहीं उसे वहीं बैठाकर भरपेट भोजन भी करवाया और घर तक अपनी गाड़ी से छोड़ आया। यह सब करते हुए उसके चेहरे पर जो संतोष का भाव झलक रहा था, वह दर्शनीय था।

प्रश्न 3. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि किन-किन मानवीय गुणों का वर्णन करता है? आप इन गुणों को क्यों आवश्यक समझते हैं, तर्क सहित उत्तर लिखिए।

अथवा

प्रश्न. ‘मनुष्यता’ कविता के द्वारा कवि ने क्या प्रतिपादित करना चाहा है? विस्तार से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– ‘मनुष्यता’ कविता में कवि मानवता, एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता, परोपकार और करुणा आदि मानवीय गुणों का वर्णन करता है। कवि अपनी कविता के द्वारा मनुष्य को स्वार्थ, भिन्नता, वर्गवाद, जातिवाद आदि संकीर्णताओं से मुक्त करना चाहता है। मनुष्य में उदारता के भाव को भरना चाहता है। कवि चाहता है कि हर मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। कवि की इच्छा है कि हर मनुष्य को दुखियों, वंचितों और जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कवि कहता है कि मनुष्य कर्ण, दधीचि, रंतिदेव आदि के अतुल परोपकारमय त्याग से प्रेरणा ले। मैं भी मानवता की रक्षा के लिए इन गुणों को आवश्यक समझता हूँ। परोपकार देवत्व का दूसरा रूप है। स्वार्थी मनुष्य केवल अपने लिए जीता है और केवल स्व के लिए जीवन को धारण करना पशु प्रवृत्ति है।

प्रश्न 4. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने सबको एक साथ होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है? इससे समाज को क्या लाभ हो सकता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा दी है। सभी प्राणी मूलतः एक हैं क्योंकि वे एक ही पिता की संतान हैं। साथ होकर चलना ही मनुष्यता है। अकेले चलना या तो स्वार्थ प्रकृति है या फिर पशु-प्रवृति। एक साथ चलने से आपसी सहयोग बढ़ता है, लड़ाई-झगड़े नहीं होते। मनुष्य सामर्थ्यवान बनता है। एक साथ होकर चलने से अनेक लाभ हैं। आपसी सहयोग बढ़ने से संबंध मजबूत होते हैं। ऐसे ही संबंधों पर मानवीय समाज की स्थापना संभव हो जाती है। समाज भी प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है और प्रत्येक मनुष्य में लोकहित की भावना जागृत होती है जिससे एक – दूसरे की व्यथा महसूस होती है और भिन्नता की भावना समाप्त होती है।

प्रश्न 5. कविता के आधार पर ‘मनुष्यता’ के गुणों/लक्षणों की चर्चा विस्तारपूर्वक कीजिए।

अथवा

प्रश्न. मनुष्यता ‘कविता के माध्यम से कवि ने किन गुणों को अपनाने का संकेत दिया है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर : मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि ने परोपकार, वसुधैव कुटुंबकम्, सहयोग की भावना, भाईचारा, दानशीलता, उदारता, अहंकार का त्याग, धन का अहंकार न करना, भेदभाव न करना, सहानुभूति की भावना आदि गुणों को अपनाने का संकेत दिया है क्योंकि यही गुण मनुष्य की पहचान हैं। माँ सरस्वती भी परोपकारी व्यक्ति की प्रशंसा करती हैं। हम सब एक ही परमपिता की संतान होने के कारण आपस में भाई-भाई हैं इसलिए हमें एक-दूसरे की उन्नति में सहयोग देना चाहिए। हम सबका लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है जिसके लिए हमें रंतिदेव, दधीचि, उशीनर, कर्ण व महात्मा बुद्ध जैसा उदार व दानी बनना चाहिए।

प्रश्न 6. ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर आदर्श मानवता पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर आदर्श मानव वही है जो सभी मनुष्यों को अपना बंधु माने। लोगों के कर्म बेशक विविध हैं किंतु अंतरात्मा से सभी एक हैं। इसलिए हर मनुष्य को दूसरे की व्यथा हरने का प्रयत्न करना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि एक-दूसरे के साथ आपस में मेल-जोल बढ़ाते हुए, राह के रोड़ों को हटाते हुए, भिन्नता की जगह एकता को बढ़ाते हुए औरों का उद्धार करे तथा सभी मनुष्यों को अपना बंधु मानते हुए, सद्कर्म करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए।

प्रश्न 7. ‘मनुष्यता’ कविता का प्रतिपाद्य लगभग 100 शब्दों में लिखिए।

उत्तर : मनुष्यता अर्थात् वह गुण जो एक मानव को सच्चा मनुष्य बनाते हैं। कवि इस कविता के द्वारा एक सच्चे मनुष्य के गुणों का उल्लेख कर रहा है। उसके अनुसार एक सच्चा मनुष्य वही है, जो आत्मकेंद्रित न होकर परहित का कल्याण करें। जो लोग स्वार्थी हैं, वे केवल अपना हित चाहते हैं उनमें मनुष्यता जैसी पवित्र भावना का अंश नही हैं। कवि ने राजा रंतिदेव, दधीचि, राजा उशीनर एवं कर्ण जैसे महादानियों का उदाहरण देकर मनुष्यों को बेझिझक दान करने के लिए प्रेरित किया है। महात्मा बुद्ध के समान स्नेहपूर्वक सारी कुप्रथाओं का अंत के करने की ओर संकेत किया है।

एक सच्चा मानव वही है जो सब कुछ पाने के बाद भी घमंड न करे और सदैव न्याय एवं सच्चाई के पथ पर अडिग रहे। हमें अकेले ही नहीं अपितु सबको साथ लेकर चलना है, केवल अपना ही कल्याण नहीं अपितु संसार के कल्याण एवं सुख की भी कामना करनी है। अपने बाग रूपी मन को प्रेम, सद्भावना, सच्चाई एवं दया जैसे गुणों से सींचना है। एक सच्चा मनुष्य कभी किसी भी विपत्ति में घबराता नहीं है। वह परहित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहता है। वह अपनी ही नहीं सबकी उन्नति का बीड़ा उठाता है। जिस मनुष्य में ये सब मूल्य हैं वही एक सच्चा भलामानस है जिसमें मनुष्यता है पशु-वृत्ति नहीं।

प्रश्न 8. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने किन महान व्यक्तियों का उदाहरण दिया है और उनके माध्यम से क्या संदेश देना चाहा है?

अथवा

प्रश्न. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?

उत्तर : मनुष्यता कविता में कवि राजा रंतिदेव, दधीचि ऋषि, उशीनर, कर्ण तथा महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए मानवता, एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह मनुष्य को स्वार्थ, भिन्नता, वर्गवाद, जातिवाद आदि संकीर्णताओं से मुक्त करना चाहता है। वह मनुष्य में उदारता के भाव भरना चाहता है। कवि चाहता है कि हर मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। वह दुखियों, वंचितों और जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार हो। वह कर्ण, दधीचि, रंतिदेव आदि के अतुल त्याग से प्रेरणा ले। वह अपने मन में करुणा का भाव जगाए। वह अभिमान, लालच और अधीरता का त्याग करे। एक-दूसरे का सहयोग करके देवत्व को प्राप्त करे। वह हँसता-खेलता जीवन जिए तथा आपसी मेल-जोल बढ़ाने का प्रयास करें। उसे किसी भी सूरत में अलगाव और भिन्नता को हवा नहीं देनी चाहिए।