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भय और साहस में संतुलन


  • संतुष्टि का मतलब है सच्चा रईस होना। बहुत ज्यादा अमीर , पर मन से….. यानि अंदरुनी समृद्धि।
  • जिस दिन आपमें संतुष्टि आ गई, आप काम को एक अलग स्तर पर लेकर चले जाएंगे। क्योंकि तब आप अपनी खुशी के लिए काम पर निर्भर नहीं होंगे। बल्कि संतुष्ट रहकर काम करेंगे तो अलग ऊर्जा का प्रवाह करेंगे।
  • हम कपड़ों में सिलवटें नहीं देख सकते, लेकिन किसी के लिए जो इतना सारा कूड़ा भरकर रखा है, उसमें हमें कुछ गलती नहीं दिखाई दे रही है।
  • दुष्ट व्यक्ति की मदद करके लाभ की अपेक्षा मत रखो।
  • साहस के बारे में समझने वाली बात यह है कि यह अचानक से प्रकट नहीं होता, उस समय तो बिल्कुल नहीं, जब हमें इसकी जरूरत होती है। यह बहुत कठोर आत्मचिंतन और वास्तविक कार्य का परिणाम है, जिसमें भय और निडरता का संतुलन होता है।
  • भय नहीं होगा तो हम मूर्खतापूर्ण चीजें करने लगेंगे और साहस नहीं होगा तो हम कभी अज्ञात की ओर कदम नहीं बढ़ा सकेंगे।
  • प्राथमिकता की सूची में अपना मन सबसे ऊपर होना चाहिए।
  • जब हम भय और साहस में संतुलन बनाना सीख जाते हैं तो व्यवधान पैदा होने पर भी हम भयभीत या चिंतातुर नहीं हो जाते, क्योंकि हम जानते हैं कि हम किसी न किसी तरह कोई उपाय खोज ही लेंगे।
  • जीवन पहले ही डराने वाला और कठिन है। ऐसे में अपने सपनों को सच करने के लिए हमें साहसी होना पड़ेगा। अपने डर का सामना करने और उससे होकर गुजरने का साहस जुटाने के लिए हमें अपनी क्षमताओं का उपयोग करना चाहिए। अगर आपने अपने डर को जीत लिया तो किसे पता कि जीवन आपको कहां ले जाएगा।
  • अपराध होने ही न देना अपराधियों को दंडित करने से बेहतर है।
  • सत्य से रूबरू होना ही आपके लिए स्वतंत्रता के द्वार खोल देता है।
  • बुरे वक्त से लड़ने की ताकत रखें, जीत का रास्ता अपने आप निकल आएगा।
  • एक कदम आगे बढ़ाने के लिए बीस करोड़ कोशिकाएं कार्य करती हैं। इसलिए अपनी हर यात्रा, हर पहल को कभी कमज़ोर या कमतर नहीं समझना चाहिए।
  • हर 27वें दिन शरीर की थकी-मांदी त्वचा झड़कर निकल जाती है। हम क्यों विगत की सूखी, दुखद यादों को अपने साथ लिए फिरें? चाहें तो, साफ, चमकदार सोच हमें सहज ही मिल सकती है।
  • जुबान हमारे शरीर की सबसे मजबूत मांसपेशी है। हमें बोलने के लिए यह मानव रूप मिला है। इसलिए ईमान से और साफगोई से बोलें। हमारे देश में तो वाणी की मृदुलता पर बड़ा जोर दिया जाता है। इसकी ताकत को याद रखते हुए ही कितने ही अवसरों पर इसको विराम देने की हिदायत को भी याद रखने को कहा जाता है।