बादल राग – सार
बादल राग – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला जी’ (कवि)
सारांश
लघुमानव (आम आदमी) के दुःख से त्रस्त कवि बादल का आह्वान क्रांति के रूप में कर रहा है। जबकि किसान-मज़दूर की आकांक्षाएँ बादल को नव-निर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं। क्रांति के बादलों की गर्जना व विनाशलीला से व वज्र प्रहार से बड़े पेड़, उच्च वर्ग, पूंजीपति वर्ग भी भयभीत हो रहे हैं जबकि छोटे पौधे, जनसामान्य वर्ग, किसान, दलित व शोषित वर्ग प्रसन्न हो रहा है क्योंकि नव-निर्माण की आशा बँध गई है।