प्रदूषण एवं पर्यावरण
प्रस्तावना – मानव जीवन सदैव पर्यावरण से प्रभावित रहता है। अतः मानव जीवन सुचारु रूप से चले, इसके लिए संतुलित पर्यावरण बहुत आवश्यक है। संतुलित पर्यावरण में सभी तत्व एक निश्चित अनुपात में विद्यमान रहते हैं। किंतु जब उसमें विषैले तत्वों की अथवा किसी एक तत्व की अधिकता या कमी हो जाती है, तो वातावरण दूषित हो जाता है। इसे ही ‘प्रदूषण’ कहा जाता है।
प्रदूषण का अर्थ – प्रदूषण से तात्पर्य जलवायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है, जिससे मानव जीवन, जीव-जंतु, पेड़-पौधे इत्यादि को नुकसान हो सकता है। कोई भी वस्तु जो इस्तेमाल करने के बाद फेंक दी जाती है, प्रदूषण को बढ़ाती है।
प्रदूषण के प्रकार – प्रदूषण विभिन्न प्रकार के होते हैं; जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण आदि। इनमें सबसे अधिक हानिकारक वायु प्रदूषण है। वायुमंडल में गैसों की मात्रा निश्चित होती है। इनमें ज़्यादा मात्रा ऑक्सीजन और नाइट्रोजन की होती है। मानव जब साँस छोड़ता है, तो कार्बन-डाइ-ऑक्साइड निकालता है। सक्रिय ज्वालामुखियों से उत्पन्न गैसों के अतिरिक्त लकड़ी, कोयला, खनिज तेल के जलने से भी वातावरण दूषित होता है। औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली सल्फर-डाइ-ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैसें वायुमंडल में पहुँचकर पुन: वर्षा के जल के साथ घुलकर पृथ्वी पर पहुँचती हैं और गंधक का अम्ल बनाती हैं, जो मानव-जीवन और जीव-जंतुओं के लिए घातक होता है। इसके अतिरिक्त कीटनाशक – जीवनाशक रसायनों-निकेल, टाइटेनियम, बेरीलियम, टिन, आर्सेनिक, पारा, सीसा आदि के कार्बनिक यौगिकों के कण वायु में होते हैं, जो मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस प्रदूषण से फेफड़ों में विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं।
आजकल ऐसे सैकड़ों रसायन मनुष्य प्रतिवर्ष संश्लेषित कर रहा है, जिनसे मनुष्यों, पौधों और प्राणियों को रोग से बचाया जा सके; किंतु इन रसायनों के घातक परिणाम भी सामने आए हैं।
जल के बिना किसी भी प्राणी का जीवित रहना असंभव है। जल में अनेक कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ, खनिज तत्त्व और गैसें घुली होती हैं। जब इन तत्त्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तब जल प्रदूषित हो जाता है और वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। कल-कारखानों से निकले हुए वर्जित पदार्थ, कीटनाशक पदार्थ, रासायनिक खाद आदि से भी जल प्रदूषित हो जाता है। ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, आँतों के रोग व अन्य संक्रामक रोग हो जाते हैं।
बड़े-बड़े नगरों में अनेक प्रकार के वाहन, लाउडस्पीकर, बाजे एवं औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर से ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न होता है। इससे मानव की सुनने की शक्ति कम होती है और उसके मस्तिष्क पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परमाणु शक्ति के उत्पादन व नाभिकीय विखंडन ने वायु, जल व ध्वनि, तीनों प्रदूषणों को काफी बढ़ा दिया है । अतः इस समस्या का निराकरण होना चाहिए, अन्यथा इसके भयंकर परिणाम आगे आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतने पड़ेंगे।
प्रदूषण की समस्या के निराकरण के उपाय-प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों पर अमल करना आवश्यक है :
(क) नए-नए वृक्ष लगाने से भी प्रदूषण को रोका जा सकता है; क्योंकि वे वातावरण को स्वच्छ रखते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे सभी प्राणियों को साँस लेने में सुविधा रहती है।
(ख) वनों के विनाश पर रोक लगाई जाए; क्योंकि वन भी पर्यावरण को प्रदूषण से बचाते हैं। बस्ती व नगर के समस्त दूषित पदार्थों के निष्कासन के लिए सुदूर स्थान पर समुचित व्यवस्था की जाए, ताकि वे सारा वातावरण गंदा न करें।
(ग) बस्ती व नगर में स्वच्छता व सनाई अभियान चलाए जाएँ और सब लोगों को स्वच्छता व सफाई के लाभों का ज्ञान कराया जाए।
(ङ) पीने का पानी स्वच्छ होना चाहिए; खास तौर पर गाँवों के लोग उसी कुएँ से पानी पी लेते हैं और वहीं कपड़े भी धो लेते हैं, जो कि ठीक नहीं है ।
(च) परमाणु विस्फोटों, परमाणु परीक्षणों पर पूर्ण नियंत्रण रखा जाए।
उपसंहार – इतने प्रयासों के बावजूद प्रदूषण की समस्या का पूर्ण समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। औद्योगिक विकास, नगरीकरण, वनों का विनाश और जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण यह समस्या बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की अनेक संस्थाओं, जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व पर्यावरण संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय वन्य संरक्षण संस्थानों ने भी प्रदूषण को दूर करने के भरसक प्रयास किए हैं और काफी हद तक इसमें सफलता भी मिली है।