पारिवारिक पत्र – पुत्र के नाम पिता की ओर से पत्र : धन भेजने, सत्संगति और मन लगाकर पढ़ने के लिए।
पुत्र के नाम पिता की ओर से पत्र : धन भेजने, सत्संगति और मन लगाकर पढ़ने के लिए।
7, हौजखास अपार्टमेंटस,
नई दिल्ली- 110016
दिनांक 1.1.20 ……
प्रिय बेटा भव्य,
शुभाशीष !
दिनांक 24 दिसंबर 20…… का लिखा तुम्हारा पत्र मिला। पत्र पढ़कर समाचार ज्ञात किया। अपने कुशल-समाचारों से इसी प्रकार सूचित करते रहा करो। हम सभी यहाँ पर कुशलतापूर्वक हैं। इसलिए तुम्हें यहाँ की चिंता न कर अपनी पढ़ाई-लिखाई में मन लगाना चाहिए। तुमने जो पाँच सौ रुपए भेजने की बात लिखी है, वह मैं अलग से धनादेश से भिजवा रहा हूँ। मिलने पर सूचित करना।
अभी कुछ दिनों पहले तुम्हारे विद्यालय द्वारा भेजी गई तुम्हारी ‘प्रगति रिपोर्ट’ की एक प्रति प्राप्त हुई। उसके साथ तुम्हारे विद्यालय के प्राचार्य महोदय का लिखा एक पत्र भी संलग्न था। इस पत्र में हमें सूचित किया गया है कि आजकल तुम पहले की तरह मन लगाकर पढ़ाई-लिखाई नहीं कर रहे हो। इसका कारण यह बताया गया है कि आजकल तुम्हारा उठना-बैठना कुछ ऐसे लड़कों के साथ हो रहा है, जिन्हें कोई भी अच्छा नहीं समझता। इसी तरह छात्रावास में तुम्हारे पास बुरी आदतों के शिकार लड़के भी आते-जाते हैं। इस बुरी संगति ने तुम्हें शिक्षा पाने के लक्ष्य से भटका दिया है। किसी भी दृष्टि से यह उचित नहीं ।
याद रखो संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है। अपने आस-पास के समाज में मनुष्य संगति और व्यवहार से ही पहचाना जाता है। बुरे लोगों की संगति आदमी को कहीं का नहीं रहने देती। आशा है, संक्षेप में कही हमारी बात को ध्यान में रख, समझदारी से काम लेते हुए अपनी, अपने घर-परिवार और सभी शुभचिंतकों की इज्जत की रक्षा करोगे।
तुम्हारी माता की ओर से आशीर्वाद। चिरंजीव तुम्हें बहुत याद किया करता है। इसका उत्तर जल्दी देना। शेष शुभ।
तुम्हारा शुभचिंतक पिता,
रवींद्र