पाठ का सार : तुम कब जाओगे, अतिथि
तुम कब जाओगे, अतिथि – शरद जोशी
प्रस्तुत व्यंग्यात्मक लेख में ऐसे लोगों की आलोचना की गई है जो दूसरों के घर पर जबरदस्ती कब्जाकर मेहमाननवाजी कराते हैं और वापिस जाने का नाम नहीं लेते। ये लोग बिना सूचना दिए चले आते हैं। रिश्तेदारी दो-चार दिन के लिए ही उपयुक्त होती है। फिर भारी पड़ने लगती है। इस पाठ में एक इसी प्रकार के मेहमान के बारे में मेजबान निरंतर कुछ न कुछ कयास लगाता है।
मेहमान को घर में आए चार दिन बीत गए। बार-बार मन यह सोचने पर विवश हो जाता है कि अतिथि कब जाएँगे। लेखक अतिथि को स्मरण दिलाना चाहते हैं कि कैलेंडर सामने लगा है, सिगरेट का धुआँ उछाल रहे हो, दो दिन से तुम्हारे जाने की प्रतीक्षा हो रही है। कम से कम यह तो ख्याल रखना चाहिए कि घर में रहते हुए बहुत दिन बीत गए। लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद एस्ट्रॉनाट्स भी इतने समय तक चाँद पर नहीं रुके थे। माना कि तुमने एक अंतरंग निजी संबंध मुझसे स्थापित कर लिया है, किंतु आर्थिक अभावों के वाबजूद तुम यहीं टिके रहना चाहते हो। अब तुम्हें घर लौट जाना चाहिए, क्या तुम्हें अपने घर की याद नहीं आती?
जब अतिथि घर आए तब उनका आदर-सत्कार किया गया। पत्नी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। विविध भोज्य सामग्री बनाई गई। सिनेमा दिखाया गया और मेहमाननवाजी में भी कोई कमी नहीं आने दी। रात के भोजन को डिनर में बदल दिया गया। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी। इस आवभगत के कारण अतिथि शीघ्रतिशीघ्र लौट जाएँगे ऐसी उम्मीद रखी गई थी।
तीसरे दिन की सुबह जब उन्होंने धोबी के पास कपड़े भेजने का अनुग्रह किया तो उनका इरादा स्पष्ट होने लगा। पर मन पर नियंत्रण रखकर उनकी जिज्ञासा पूरी करने का निर्णय लिया गया। तब लगा कि हमेशा ही अतिथि देवता नहीं होते। अतिथि की लॉण्ड्रीवाली बात को सुनकर पत्नी की आँखें बड़ी हो गई। उसका मन छोटा हो गया। उसे अहसास हो गया था कि अतिथि अधिक दिन ठहरनेवाला है। उनकी यह धारणा निर्मूल नहीं थी। अतिथि के आने पर परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार-नियोजन, महँगाई, साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार-मारकर पुराने प्रेमी-प्रेमिकाओं का भी जिक्र कर लिया। उसके बाद खामोशी छा गई। बोरियत होने लगी। भावनाएँ अपशब्दों का रूप ग्रहण करने लगीं पर अतिथि था कि जाने का नाम नहीं ले रहा था। बार-बार मन में प्रश्न कूदने लगता है कि अतिथि कब वापिस जाएँगे? अगर अतिथि का बस चलता तो वह यहीं रह जाते, उन्हें तो यह स्वीट होम लग रहा था परंतु शराफत भी कोई चीज होती है। गेट आउट भी एक वाक्य है जो बोलने में देर नहीं लगती।
आज मेहमाननवाजी का पाँचवाँ दिन था। एक देवता और अतिथि में अंतर होता है। देवता तो दर्शन देकर लौट जाते हैं, इसी में उनका देवत्व है। अतिथि को भी अपना देवत्व पहचानना चाहिए।