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परिशेषणं क्या है?

इसमें व्यक्ति हथेली में जल लेकर प्लेट या केले के पत्ते के चारों ओर तीन बार घुमाता है। साथ में मंत्र पढ़ता है। फिर अंत में हथेली पर बची पानी की बूंदें पी लेता है।

इसके पीछे आध्यात्मिक, स्थितिपरक और वैज्ञानिक, तीनों कारण हैं।

आध्यात्मिक कारण के मुताबिक इससे भोजन शुद्ध होता है, जिसे जीवन को चलाने वाले, शरीर के प्राण को समर्पित किया जाता है। सूर्य देव से प्रार्थना की जाती है कि वे भोजन को उस अमृत में बदलें जो जीवन को शक्ति देता है।

यह एक पवित्र कार्य भी है, जहां व्यक्ति पूरे हृदय से भोजन स्वीकार करता है और आलौकिक शक्ति के आगे झुकता है।

स्थितिपरक कारण यह बताया जाता है कि जल से केले के पत्तों के इर्द- गिर्द एक सीमा बन जाती है, जिससे चींटियां खाना सूंघकर नहीं आ पाती हैं।

वैज्ञानिक कारण यह बताया जाता है कि जब परिशेषणं से बचा जल गले में जाता है तो यह ‘अवरोधिनी’ (पेट और भोजन – नली को जोड़ने वाला एक तरह का ढक्कन) को छूता है, जिससे यह खाना स्वीकार करने के लिए खुल जाती है। फिर भोजन – नली से होते हुए खाना पेट तक पहुंचता है।