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परिचय देना और परिचय प्राप्त करना (मौखिक अभिव्यक्ति)


परिचय देना और परिचय प्राप्त करना ऐसी क्रिया है, जिसका उपयोग हम अपने प्रतिदिन के जीवन में, विभिन्न अवसरों पर तो करते ही रहते हैं, साक्षात्कार के समय या अन्य विशेष अवसरों पर भी इसकी औपचारिक रूप से आवश्यकता होती है। यह परिचय औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है। मंच पर खड़े होकर मुख्य अतिथि का स्वागत करने के उपरांत उनका औपचारिक रूप से परिचय दिया जाता है। मित्र-मंडली में किसी नए सदस्य के आगमन पर उसका परिचय अनौपचारिक होता है। निजी परिचय किसी सभा या साक्षात्कार में औपचारिक और अन्यत्र अनौपचारिक होता है।

अवसर चाहे कोई भी हो, किसी का भी परिचय दिया जा रहा हो, कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए :

1. जिसका परिचय दिया जाना है, उससे संबंधित संपूर्ण जानकारी आपके पास हो ।

2. नाम से पूर्व कोई विशेषण या उपाधि लगती हो तो उसका प्रयोग ज़रूर करना चाहिए।

3. नाम के बाद जी, महोदय जैसे सम्मानबोधक शब्दों का प्रयोग यथावसर करना चाहिए।

4. परिचय संक्षिप्त किंतु सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट करने वाला होना चाहिए।

5. जन्म, जन्म स्थान, शिक्षा प्राप्ति के स्थलों आदि पर बल देने के बजाय व्यक्तित्व की विशेषताओं और उपलब्धियों पर बल अधिक देना चाहिए।

6. परिचय कभी भी अपमानजनक नहीं होना चाहिए। ऐसे प्रसंग यदि हों भी तो चतुराई से उनसे बचना चाहिए।

7. प्रशंसा दिल खोलकर करनी चाहिए, किंतु बहुत बढ़ा-चढ़ाकर भी नहीं अन्यथा उसका महत्त्व नहीं रहता।

(x) जैसा कि हम सब जानते हैं कि ये एक प्रसिद्ध गायिका हैं पर इनकी एक कमज़ोरी है। ये आसानी से गाना सुनाने को तैयार नहीं होतीं। पर आज कुछ भी हो, हम गाना सुने बिना इन्हें छोड़ेंगे नहीं।

(x) जैसा कि हम सब जानते हैं ये प्रसिद्ध गायिका हैं- लता मंगेशकर भी इनके सामने पानी भरती हैं। ईश्वर ने मानो संगीत की संपूर्ण शिक्षा देकर ही इन्हें धरती पर भेजा है।

(✓) माधुरी जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। गायन के क्षेत्र में इनका कोई सानी नहीं। हमारा इनसे विनम्र अनुरोध है कि सभा के अंत में गीत की कुछ पंक्तियाँ ही सही, सुनाकर माधुरी जी हमें कृतार्थ करें।

8. व्यक्तिगत परिचय का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें कहीं भी अहंकार नहीं झलकना चाहिए।

(x) लोग मुझे दिव्य प्रकाश के नाम से जानते हैं।

(x) मैं हूँ दिव्य प्रकाश।

(✓) मेरा नाम दिव्य प्रकाश है।

9. यदि अपनी विशिष्ट उपलब्धियाँ बतानी भी हों तो विनम्रतापूर्वक बतानी चाहिए।

10. नाम से आरंभ करके अपना निवास, विद्यालय, कक्षा और फिर अवसर के अनुसार माता-पिता के संबंध में/ रुचियाँ / जीवन का लक्ष्य/विशिष्ट उपलब्धियाँ आदि बतानी चाहिए। अनौपचारिक रूप से परिचय देते समय भी शालीनता को बनाए रखना चाहिए। अंतर बस इतना ही है कि इसमें स्वाभाविकता अधिक होती है, गंभीरता कम होती है।

उदाहरण

अपनी मित्र-मंडली में यदि आप एक नए मित्र को सम्मिलित करने के लिए लाए हैं, तो यह परिचय अनौपचारिक होगा :

– हैलो निमिष ! हैलो आयूष कैसे हो?

– हैलो संचित ! यह तुम्हारे साथ कौन हैं?

– यह मेरा मित्र निहित है। इसने एयर फोर्स स्कूल से दसवीं की परीक्षा दी है। पढ़ाई में तो यह तेज़ है ही, कंप्यूटर और क्रिकेट में भी इसका जवाब नहीं। आज से यह भी हमारे साथ खेला करेगा।


परिचय लेना


परिचय देने के समान परिचय प्राप्त करने में भी कुछ विशिष्टताएँ होती हैं। यह भी औपचारिक, अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है; जैसे-किसी सभा में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाए जाने वाले व्यक्ति का परिचय लेना या पत्रिका में छापने के लिए किसी विशिष्ट व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करना औपचारिक होगा। किसी अपरिचित को मित्र बनाते समय लिया जाने वाला परिचय अनौपचारिक होगा।

परिचय प्राप्त करते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि सभी ज़रूरी जानकारी एकत्र की जाए। परिचय पूछ कर सुनने में रुचि लें। ऐसा लगना चाहिए कि आप जानने के इच्छुक हैं। अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हुए बताई गई बातों को ध्यानपूर्वक सुनें। परिचय प्राप्त करने के बाद धन्यवाद तथा कृतज्ञता ज्ञापन अवश्य करें। अनौपचारिक परिचय में पुनः मिलने की इच्छा प्रकट करें।