पद्यांश / काव्यांश
दिए गए पद्यांश पर आधारित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले लिखिए-
दूर-दूर से आते हैं घन
मेरी लिपट शैल में छा जाते हैं
मानव की ध्वनि सुनकर पल में
गली-गली में मँडराते हैं
जग में मधुर पुरातन परिचय
श्याम घरों में घुस आते हैं,
है ऐसी ही कथा मनोहर
उन्हें देख गिरिवर गाते हैं
ममता का यह भीगा अँचल
हम जग में फ़िर कब पाते हैं
अश्रु छोड़ मानस को समझा
इसीलिए विरही गाते हैं
सुख-दुःख के मधु-कटु अनुभव को
उठो हृदय, फुहियों से धो लो,
तुम्हें बुलाने आया सावन,
चलो चलो अब बंधन खोलो
पवन चला, पथ में हैं नदियाँ
उछल साथ में तुम भी हो लो
प्रेम-पर्व में जगा पपीहा,
तुम कल्याणी वाणी बोलो!
आज दिवस कलरव बन आया,
केलि बनी यह खड़ी निशा है;
हेर हेर अनुपम बूँदों को
जगी झड़ी में दिशा-दिशा है।
बूँद-बूँद बन उतर रही है
यह मेरी कल्पना मनोहर,
घटा नहीं प्रेमी मानस में
प्रेम बस रहा उमड़-घुमड़ कर
भ्रांति-भ्रांति यह नहीं दामिनी,
याद हुई बातें अवसर पर,
तर्जन नहीं आज गूंजा है
जड़-जग का गूंजा अभ्यंतर !
इतने ऊँचे शैल-शिखर पर
कब से मूसलाधार झड़ी है;
सूखे वसन, हिया भीगा है
इसकी चिंता हमें पड़ी है!
बोल सरोवर इस पावस में
आज तुम्हारा कवि क्या गाए,
कह दे श्रृंग सरस रुचि अपनी,
निर्झर यह क्या तान सुनाए;
बाँह उठाकर मिलो शाल,
ये दूर देश से झोंके आए
रही झड़ी की बात कठिन यह,
कौन हठीली को समझाए!
अजब शोख यह बूँदा बाँदी,
पत्तों में घनश्याम बसा है।
झाँके इन बूँदों से तारे,
इस रिमझिम में चाँद हँसा है!
जिय कहलाता है मचल-मचलकर
अपना बेड़ा पार करेंगे
हिय कहता है, जागो लोचन,
पत्थर को भी प्यार करेंगे ।।
(केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’)
प्रश्न. उपरोक्त काव्यांश का वर्ण्य-विषय क्या है?
(क) प्रकृति
(ख) बादल
(ग) पावस ऋतु
(घ) जन-जीवन
प्रश्न. ‘सूखे वसन, हिया भीगा है’ का अर्थ है-
(क) पैर भीगे हैं किन्तु हाथ सूखे हैं।
(ख) अभ्यन्तर हृदय भीग गया है किन्तु कपड़े सूखे हैं।
(ग) तन ऊपर से भीग गया है किन्तु मन सूखा ही रह गया है।
(घ) मैदान भीगे हैं परन्तु पहाड़ों पर मूसलाधार वृष्टि हो रही है।
प्रश्न. मानव की ध्वनि सुनकर पल में गली-गली में मँडराते हैं-पंक्ति में निहित अलंकार कौन सा है?
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) मानवीकरण
(घ) अनुप्रास