पत्र लेखन (Letter-Writing)


पत्र – लेखन (Letter-Writing)


पत्र – लेखन एक कला है। पत्र संदेश पाने और भेजने का सबसे सुलभ साधन है। पत्र के द्वारा हम दूर बैठे अपने आत्मीयों से विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं, जैसे वे हमारे सम्मुख ही बैठे हों। अस्तु, पत्र ऐसा लिखना चाहिए कि पढ़ने वाला पत्र लिखने वाले के संपूर्ण विचारों को स्पष्ट रूप से समझ सके और उससे प्रभावित भी हो सके। वास्तव में पत्र, प्रेषक का सही प्रतिबिंब होना चाहिए। आजकल पत्र साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। अनेक उपन्यास और कहानियाँ पत्रात्मक शैली में लिखी हुई हैं। पत्र का हमारे दैनिक व्यावहारिक जीवन में बहुत महत्त्व है।

आदर्श पत्र के गुण

आदर्श पत्र के निम्नलिखित गुण हैं :

1. सरलता : पत्र की भाषा सरल होनी चाहिए, जिससे पत्र पढ़ने वाला स्पष्ट रूप से पूरी-पूरी बातें समझ सके। पत्र में लेखक को आत्मीयता का परिचय देना चाहिए।

2. स्पष्टता : पत्र में लिखा गया विषय स्पष्ट होना चाहिए। उसके भाव अथवा अर्थ को समझने में पढ़ने वाले को कोई कठिनाई न हो। वाक्यों की संरचना उलझी हुई व दोषपूर्ण नहीं होनी चाहिए। इससे पत्र प्रेषक के मन की बात पत्र पढ़ने वाले तक पहुँच सकेगी।

3. निश्चितार्थता : पत्र में श्लेष अलंकार का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पत्र में अनेकार्थक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ये पत्र के उद्देश्य की पूर्ति में बाधक सिद्ध होते हैं।

4. संक्षिप्तता : पत्र संक्षिप्त होना चाहिए। उसका अनावश्यक विस्तार पत्र के उद्देश्य को समाप्त कर देता है और पढ़ने वाला भी ऊब जाता है।


पत्र के अंग

साधारण पत्र के निम्नलिखित अंग हो सकते हैं:

1. स्थान व तिथि : पत्र के ऊपरी सिरे पर बाईं ओर किनारे पर, पत्र कहाँ से भेजा गया है और किस तिथि में लिखा गया है, के संबंध में लिखना चाहिए। सबसे पहले स्थान का नाम, फिर उसके नीचे की पंक्ति में तिथि लिखनी चाहिए।

2. संबोधन या प्रशस्ति : पत्र आरंभ करने से पूर्व पत्र के बाईं ओर सब से ऊपर पत्र प्राप्तकर्ता के साथ संबंध के अनुरूप संबोधन का प्रयोग करना चाहिए।

3. शिष्टाचार : संबोधन के उपरांत उसके नीचे ठीक मध्य में संबंध अथवा पद के अनुसार शिष्टाचारी शब्द का प्रयोग करना चाहिए। जैसे प्रणाम, नमस्ते, शुभाशीष आदि।

4. प्रमुख विषय : शिष्टाचार के उपरांत पत्र का मूल विषय, जो समाचार आदि लिखना हो, लिखना चाहिए।

5. समाप्ति : पत्र के पूर्ण हो जाने पर दाईं ओर पत्र के नीचे पत्र लेखक का नाम लिखा जाना चाहिए।

6. पता : लिफाफे अथवा पोस्टकार्ड पर जिसे पत्र भेजना है – उसका नाम, कार्यालय का नाम, भवन क्रमांक, गली-मुहल्ले का नाम, नगर का नाम, पोस्ट ऑफिस व जिले तथा प्रदेश का नाम और पिन कोड स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।


पत्र का व्यावहारिक स्वरूप

पत्रों के प्रकार

साधारणतया पत्र को चार प्रमुख वर्गों में वर्गीकृत किया गया है :

1. व्यक्तिगत या पारिवारिक पत्र : परिवार का कोई सदस्य किसी दूसरे सदस्य को जो पत्र लिखता है, वह ‘व्यक्तिगत या पारिवारिक पत्र’ कहलाता है। परिवार समाज का विशिष्ट अंग होता है। पारिवारिक सदस्य के समाज के किसी सदस्य हैं को पारिवारिक भाव से लिखे गए पत्र भी इसी वर्ग में आते हैं।

2. व्यावसायिक पत्र : एक व्यवसायी किसी अन्य व्यवसायी अथवा ग्राहक को व्यवसाय से संबंधित जो पत्र लिखता है, वह ‘व्यावसायिक पत्र’ कहलाता है।

3. आधिकारिक पत्र : जो पत्र अधिकारियों को भेजे जाते हैं, वे ‘आधिकारिक पत्र’ कहलाते हैं। इसके अंतर्गत शासकीय या अर्द्ध शासकीय अधिकारियों को भेजे जाने वाले पत्र आते हैं। आवेदन-पत्र भी इसी कोटि में आते हैं।

4. कार्यालयी पत्र : जो पत्र शासकीय अथवा अर्द्धशासकीय संस्थाओं के कार्यालयों द्वारा किसी व्यक्ति, संस्था अथवा किसी अन्य कार्यालयों को भेजे जाते हैं, वे ‘कार्यालयी पत्र’ कहलाते हैं।


पारिवारिक पत्रों के संबोधन
पारिवारिक पत्रों के संबोधन