पत्र लेखन (औपचारिक)
पत्र-लेखन एक कला है और आधुनिक युग की अनिवार्य आवश्यकता भी है। पत्रों के द्वारा परस्पर सामाजिक सम्बन्धों को जोड़ने में सहायता मिलती है तथा अनेक दृष्टियों से पत्रों की सामाजिक, पारिवारिक उपयोगिता भी है। यद्यपि आज मोबाइल युग में पत्रों का आदान-प्रदान न के बराबर हो गया है, किन्तु फिर भी अनेक ऐसे सरकारी व गैर सरकारी कार्य हैं जो पत्राचार के बिना नहीं हो सकते। उन्हें पत्र द्वारा ही प्रामाणिक माना जाता है।
पत्र की विशेषताएँ
एक अच्छे पत्र लेखन में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए :
> अनौपचारिक पत्र की भाषा सरल और आम बोलचाल की होनी चाहिए। पत्र के लिए प्रयुक्त किए गए शब्द उपयुक्त, सरल व सटीक होने चाहिए।
> पत्रों में अशिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए व बात को घुमा-फिरा कर नहीं लिखना चाहिए।
> पत्रों में विचारों की स्पष्टता होनी चाहिए। व्यर्थ के पांडित्य प्रदर्शन से बचना चाहिए।
> पत्र अपनी आयु योग्यता, पद, सम्बन्ध और सामर्थ्य को ध्यान में रखकर लिखना चाहिए।
> उद्देश्य और आशय की अभिव्यक्ति के साथ प्रारम्भ से अंत तक विनम्रता, स्नेह और शिष्टाचार का निर्वाह करना चाहिए।
> पत्र अपने में पूर्ण और संक्षिप्त होना चाहिए।
> पत्र की लिखावट सुन्दर, साफ होनी चाहिए। विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान करना चाहिए।
पत्र के भाग
पत्र के पाँच भाग होते हैं-
(1) शीर्षक / आरम्भ : पत्र में सबसे ऊपर बायीं तरफ कोने में पता और उसके नीचे दिनांक लिखनी चाहिए। यदि प्रश्न-पत्र में पते का उल्लेख न किया गया हो तो पते में ‘परीक्षा भवन’ लिखना चाहिए।
(2) सम्बोधन और अभिवादन : औपचारिक पत्रों में संबोधन हेतु प्राय: महोदय/महोदया जैसे शब्दों तथा अनौपचारिक पत्रों में प्रिय, पूजनीय, आदरणीय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें भी पत्र के बायीं तरफ ही लिखा जाता है।
(3) विषय-वस्तु : पत्र आरम्भ के बाद मुख्य विषय पर आना चाहिए। सभी बातें क्रमपूर्वक व प्रभावशाली ढंग से छोटे-छोटे परिच्छेदों में लिखनी चाहिए।
(4) मंगल कामनाएँ : मुख्य विषय समाप्त होने के पश्चात पत्र में शुभकामनाओं के साथ, मंगलकामनाओं सहित जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(5) अंत : पत्र के अंत में बाईं और सम्बोधन के अनुसार भवदीय, आपका बड़ा भाई, आपका आज्ञाकारी जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए तथा नीचे अपना (लिखने वाले का) नाम लिखना चाहिए।
लिफाफे या पोस्टकार्ड पर पत्र पाने वाले का पूरा नाम, पता, पिनकोड आदि लिखना चाहिए। पिनकोड लिखा होने से पत्र जल्दी पहुँचते हैं।
पत्रों के प्रकार
मुख्य रूप से पत्र दो प्रकार के होते हैं-औपचारिक व अनौपचारिक। अनौपचारिक पत्रों में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक आदि पत्र होते हैं तथा औपचारिक पत्रों में व्यावसायिक अथवा सरकारी, गैर सरकारी कार्यालयों से सम्बन्धित पत्र आते हैं।
उद्देश्य
> अनौपचारिक पत्र विचार-विमर्श का एक साधन है, जिनमें मैत्रीपूर्ण भावना निहित रहती है। इसमें, सरलता, संक्षिप्तता और सादगी के साथ लेखन किया जाता है।
> औपचारिक पत्र की भाषा सहज होने के साथ शिष्टाचार पूर्ण होनी चाहिए। इन पत्रों में केवल अपने काम या समस्या के बारे में ही लिखा जाता है।
> औपचारिक पत्रों द्वारा दैनंदिन जीवन की विभिन्न स्थितियों में कार्य, व्यापार, संवाद, परामर्श, अनुरोध तथा सुझाव के लिए प्रभावी एवं स्पष्ट संप्रेषण क्षमता का विकास।
> सरल और बोलचाल की भाषा-शैली, उपयुक्त, सटीक शब्दों के प्रयोग, सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष बात की प्रस्तुति ।
> प्रारूप की आवश्यक औपचारिकताओं के साथ सुस्पष्ट, सुलझे और क्रमबद्ध विचार आवश्यक तथ्य, संक्षेप और सम्पूर्णता के साथ प्रभावान्विति।
औपचारिक पत्र का प्रारूप
प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र
सेवा में,
प्रधानाचार्य,
विद्यालय का नाम व पता…………….
विषय (पत्र लिखने का उद्देश्य)……………..
महोदय,
पहला अनुच्छेद……………..
दूसरा अनुच्छेद………………
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रेषक का नाम………………
कक्षा…………………..
दिनांक …………………