न चोरी न चापरी धीरे – धीरे आपरी

इस कहावत का अर्थ यह है कि किसी भी चीज़ की जरूरत होती है तो हम अधिकार से मांगकर ले जाते हैं और फिर देना भूल जाते हैं।

यदि उन्हें याद आ गई और मांग ली तो ये कहकर कि ओह! माफ करना, मैं भूल गई थी, लौटा दी जाती है। यदि लेने वाले और देने वाले दोनों भूल गए तो वो चीज़ धीरे – धीरे उसकी हो जाती है जिसे हम चोरी भी नहीं कह सकते। इसीलिए कहते हैं :

न चोरी न चापरी धीरे – धीरे आपरी

किसी से कोई आवश्यक वस्तु लें तो ये कहावत याद रखें। लौटाना भी याद रहेगा। 👍