नैतिक शिक्षा

नैतिक शिक्षा का विषय हर जमाने में स्कूल की शिक्षा का अंग रहा है। इस जमाने में भी हिन्दी मीडियम स्कूलों में नैतिक शिक्षा के नाम से ही है। अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में नाम बदलकर Values for life कर दिया गया है।

महीने में तीन दिन इस विषय का अध्ययन करवाया जाता है और साल में दो बार 40 अंकों का एक पेपर लिया जाता है। जिसके 40 में से 15 भी आ गए वह विद्यार्थी इस विषय में उत्तीर्ण हो जाते हैं।

अब मेरा प्रश्न यह है कि क्या नैतिक शिक्षा जो पढ़ाई गई,वह आचरण में लाई गई?

नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है -नीति संबंधित शिक्षा।

नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है कि विद्यार्थियों को नैतिकता, सत्यभाषण, सहनशीलता, विनम्रता, प्रमाणिकता आदि सभी गुणों को प्रदान करना।

पर क्योंकि बात आज के जमाने की हो रही है तो इस जमाने में यह काम परिवार को ही करना पड़ेगा। स्वयं आचरण में लाना होगा नैतिक मूल्यों को। क्योंकि अब स्कूल शिक्षा के मंदिर नहीं रह गए हैं ।

नैतिकता सबकी नजर में एक जैसी नहीं होती।जैसे:शाकाहारी भोजन खाने वालों को जीव हत्या अनैतिक कार्य लगेगा, पर मासाहार करने वाले के लिए वह अनैतिक कार्य नहीं है।

अगर हम स्कूल पर निर्भर रहेंगे फिर तो वही होगा जो पांडवों के साथ होता रहा। युधिष्ठिर को लगता रहा कि स्वयं धृतराष्ट्र उन्हें हस्तिनापुर सौंप देंगे और धृतराष्ट्र को लगता रहा कि युधिष्ठिर अपने आप पीछे हट जाएंगे।

इस डिजिटल युग में बच्चों के साथ संवाद करना,उनसे उनके कर्तव्य पालन करवाना, दूसरों की निजता का सम्मान करना सिखाना, किसी अजनबी से कोई चीज न लेना, दूसरे की नजरों को पढ़ना सिखाना,स्वच्छता रखना,बात करते समय भाषा की गरिमा और मर्यादा बनाए रखना भी नैतिक शिक्षा का ही अंग हैंं।

जीवन मूल्य अगर ‘आत्मा’ तक उतरें हों तो बाहर ‘चादर’ कैसी भी हो, वह कभी मैले नहीं होते