CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)Hindi GrammarNCERT class 10thParagraphPunjab School Education Board(PSEB)अनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

निबंध लेखन : सबै दिन होत न एक समान


सबै दिन होत न एक समान


प्रस्तावना – एक ज्ञानपिपासु ने एक महात्मा से प्रश्न किया, “महाराज, इस संसार में वह कौन-सी वस्तु है, जो सबसे तेज़ भागती है ?” महात्मा कुछ देर तक मौन रहे, फिर गंभीरतापूर्वक बोल उठे, “समय।” सचमुच संसार में समय ही सबसे अधिक गतिशील है। ऐसा कोई क्षण नहीं, ऐसा कोई सैकेंड नहीं, जिसमें समय विश्राम करता हो। समय की गति निरंतर जारी रहती है। उसकी साधना पर, उसकी स्वतंत्रता पर किसी का प्रतिरोध नहीं, किसी का वश नहीं।

समय की गति में बँधा हुआ यह विश्व परिवर्तनशील है। विश्व का धर्म है, परिवर्तन और विश्व की प्रकृति है, परिवर्तन । आज यह संसार जो हमारे सामने है, वह कल ऐसा नहीं था। आज के हमारे संसार में जितने लोग हमारे सामने हैं, निश्चय ही उनमें से अनेक कल नहीं थे; और कल जो आने वाला है, निश्चय है कि संसार का आज वाला यह रूप न रहेगा, हममें से कितने ही हमारा साथ छोड़ देंगे । अभी हम जिसे हँसता और मुसकराता हुआ देखते हैं, कुछ ही क्षणों में समय की गतिशीलता उसे रुला देती है । केवल व्यक्ति के ही जीवन को नहीं, बड़े-बड़े राष्ट्रों और बड़े-बड़े देशों को भी समय की गतिशीलता नचाती है। पलक मारते वह किसी को उछालकर आकाश में पहुँचा देती है और किसी को आकाश से नीचे लाकर धरती पर पटक देती है।

समय और प्रकृति – संपूर्ण विश्व समय की ताल पर ही नृत्य करता है; केवल विश्व ही नहीं, यह प्रकृति भी, जिसे हम शक्ति-सत्ताधारिणी कहते हैं। प्रकृति के आँगन में प्रातःकाल सूर्योदय के साथ जो दिन आरंभ होता है, वह सूर्यास्त के साथ ही रजनी के रूप में परिवर्तित हो जाता है। प्रकृति की वाटिका में कभी वसंत ऋतु का आगमन होता है, तो कभी ग्रीष्म ऋतु का, कभी कड़ाके की सर्दी पड़ती है, तो कभी लू के उत्तप्त झोंके उठते हैं, कभी बर्फ गिरती है, तो कभी आँधियाँ उठती हैं। क्षण-क्षण पर प्रकृति के राज्य में परिवर्तनशीलता है। प्रकृति का संपूर्ण व्यापार परिवर्तन के आधार पर चला करता है। समय प्रकृति को भी परिवर्तन के चक्र पर खूब नचाता है।

उपसंहार – अब मनुष्य को चाहिए कि वह समय रहते हुए समझकर काम करे। इस भागते हुए जगत में मनुष्य को सदैव ऐसे ही कार्य करने चाहिए, जिनसे समय की पीठ पर उसके जीवन की अमरता की कहानी अंकित हो जाए और इसके लिए मनुष्य को निरंतर सत्य और धर्म का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। सत्य और धर्म की छाया में बैठकर मनुष्य यदि जीवनपर्यंत अपने कर्तव्यों का पालन करता रहेगा, तो इस परिवर्तनशील जगत में उसकी कहानी अपने-आप लिख उठेगी और वह अपनी अमरता में समय को भी बाँध लेगा, उसे भी झुकने के लिए विवश कर देगा।