CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)EducationHindi GrammarNCERT class 10thParagraphPunjab School Education Board(PSEB)अनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

निबंध लेखन : राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी


राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी


प्रस्तावना – हमारा देश भारत महापुरुषों को जन्म देने के लिए बहुत प्रसिद्ध है। हमारे देश ने समय-समय पर ऐसे नर-रत्न उत्पन्न किए हैं, जिन्हें पाकर संपूर्ण विश्व धनी बन गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हमारे देश के ऐसे ही नर-रत्नों में थे। उन्होंने भारत में जन्म लेकर इस बीसवीं शताब्दी में भी, जब संपूर्ण विश्व भौतिकता के अंक में लोट रहा था, विश्व को आध्यात्मिकता और मानवता का संदेश देकर भारत के मस्तक को ऊँचा किया है। उनका दिया हुआ संदेश आज के अंधकारपूर्ण युग के लिए प्रकाश के समान है। विश्व उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें सदा अपने हृदय में श्रद्धा से रखेगा।

माता-पिता, जन्म और शिक्षा – काठियावाड़ में पोरबंदर नामक एक रियासत थी। गाँधी जी के पिता, जिनका नाम करमचंद था, उसी रियासत में दीवान के पद पर काम करते थे। उनके दादा इत्यादि भी उस रियासत के प्रधानमंत्री रह चुके थे। उनके पिता बड़े धर्मनिष्ठ और उदार प्रकृति के थे। उनकी माता श्रीमती पुतली बाई में भी धार्मिकता कूट-कूटकर भरी हुई थी। उनका अधिकांश समय पूजा-पाठ और व्रत के विधानों में ही व्यतीत होता था। गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर, सन 1869 ई० को पोरबंदर में हुआ। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उन्होंने अपनी प्रथम सांस धार्मिकता के ही विशुद्ध वातावरण में प्रारंभ की। यही कारण है कि गाँधी जी आदि से लेकर अंत तक विशुद्ध धार्मिक बने रहे।

गाँधी जी की बाल्यावस्था राजकोट में व्यतीत हुई; क्योंकि उनके जन्म के सात वर्ष पश्चात पिता करमचंद राजकोट चले आए और वहाँ के प्रधानमंत्री नियुक्त हुए थे। गाँधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में हुई। वे अपनी अपनी शिक्षा के प्रारंभिक चरण में बड़े संकोची स्वभाव के थे। वे प्राय: खेल-कूद से दूर एकांत में ही रहते थे। बाल्यावस्था में ही उन्हें सत्य प्रेम था। ‘राम’ का नाम बाल्यावस्था में ही उनके हृदय में घर कर गया था। वे माता की आज्ञाओं के पालक और गुरु के अनन्य भक्त थे। अठारह वर्ष की अवस्था में मैट्रिक परीक्षा पास करने के पश्चात् वे बैरिस्टरी पढ़ने के लिए विलायत चले गए। उनकी माता उन्हें विलायत जाने देना नहीं चाहती थीं; क्योंकि उन्हें भय था कि विलायत के दूषित वातावरण में जाकर उनका जीवन मलिनता के साँचे में ढल जाएगा; किंतु जब गांधी जी ने उनके सामने तीन प्रतिज्ञाएँ कीं, तब उन्होंने उन्हें विलायत जाने की आज्ञा दे दी। वे प्रतिज्ञाएँ हैं : मांसाहार न करेंगे, मंदिरा – सेवन से दूर रहेंगे और परस्त्री गमन से बचे रहेंगे। गाँधी जी ने विलायत में अपनी प्रतिज्ञाओं का पूर्ण रूप से पालन किया। उन्होंने विलायत के भौतिक वातावरण में भी बड़ी सादगी और सरलता के साथ अपना जीवन व्यतीत किया।

गाँधी जी बैरिस्टरी की उपाधि लेकर भारत लौट रहे थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। गाँधी जी के मन में अपनी माता के अंतिम दर्शन न करने का दुःख आजीवन बना रहा। उनका विवाह भी उसी समय हो चुका था, जब वे हाई स्कूल में पढ़ते थे। पहले गाँधी जी की धर्मपत्नी श्रीमती कस्तूरबा पढ़ी-लिखी नहीं थीं, गाँधी जी ने ही उन्हें शिक्षा दी। वे स्वयं भी बड़ी प्रतिभाशालिनी और कार्य-कुशल महिला थीं। उन्होंने आजीवन गाँधी जी का साथ एक सती और पतिव्रता स्त्री की भांति दिया। उनमें अपूर्व गुण थे। भारत की अमर नारियों में उनका लोग सदा सम्मान से नाम लिया करेंगे।

बैरिस्टरी– गाँधी जी जब बैरिस्टरी की शिक्षा समाप्त कर स्वदेश आए, तो उन्हीं दिनों एक भारतीय फ़र्म की ओर से एक मुकद्दमा मिला, जिसकी पैरवी उन्हें दक्षिण अफ्रीका में करनी थी। वे मुकद्दमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए।

गाँधी जी के कार्य और उनके सिद्धांत – इसके पश्चात् गाँधी जी अछूतोद्धार, हिंदू-मुस्लिम एकता तथा खादी और चरखे के प्रचार इत्यादि कार्यों में लग गए। उन्होंने अपने कार्यों के लिए समय-समय पर सारे देश का दौरा किया। उन्होंने ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ नामक हिंदी और अंग्रेज़ी में समाचारपत्र प्रकाशित किए। ये दोनों पत्र उनके विचारों के अग्रदूत थे। उन्होंने अपने कार्यों की पूर्णता के लिए कई बार व्रत, उपवास और अनशन भी किए।

सन् 1930 में गाँधी जी ने पुनः स्वाधीनता-संग्राम की घोषणा की। इस बीच वे बराबर स्वाधीनता-संग्राम के लिए क्षेत्र तैयार करने में लगे रहे। जब क्षेत्र तैयार हो गया, तो उन्होंने सत्याग्रह का बिगुल बजा दिया। उन्होंने दांडी यात्रा की और सरकार के नमक कानून को तोड़ा। वे बंदी बना लिए गए। इससे नमक आंदोलन संपूर्ण देश में फैल गया। सरकार की ओर से लाठियाँ और गोलियाँ चलने लगीं। कई सहस्र स्त्री-पुरुष पकड़कर जेल पहुँचाए गए; पर आंदोलन की गति में शिथिलता नहीं आई। 1931 ई० में सरकार और कांग्रेस में संधि होने से आंदोलन बंद हो गया। सभी राजनीतिक बंदी कारागारों से निकलकर उनके रचनात्मक कार्यों में लग गए। 1931वें गोलमेज परिषद् में सम्मिलित होने के लिए गाँधी जी इंग्लैंड गए। इंग्लैंड में सरकार ने उनकी इच्छा के विरुद्ध हरिजनों को हिंदुओं से पृथक् करके उन्हें निर्वाचन का विशेषाधिकार दिया। अतः उन्होंने भारत लौटकर आते ही पुनः आंदोलन प्रारंभ कर दिया। फलतः वे बंदी बना लिए गए। उन्होंने बंदीगृह में अनशन करना प्रारंभ कर दिया। उनके अनशन से सारे देश में क्षोभ की लहर फैल गई और सरकार भय से काँप उठी। फलस्वरूप सरकार ने उनकी बात मानकर पृथक् निर्वाचन को रद्द कर दिया।

गाँधी जी की मृत्यु और उनके आदर्श – गाँधी जी का अंतिम स्वाधीनता-संग्राम 1942 का ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन था। उन्होंने बंबई में इस आंदोलन को प्रारंभ किया। आंदोलन प्रारंभ होते ही वे भी सभी नेताओं के साथ पकड़ लिए गए और पूना के
आगा खां महल में बंद कर दिए गए। उनके नेतृत्व में लाठियों और गोलियों के बीच चार-पाँच वर्षों तक आंदोलन चलता रहा। सन् 1944 ई० में जब द्वितीय महायुद्ध समाप्त हुआ तब इस युद्ध से अंग्रेज काफी कमजोर पड़ गया, और इधर भारतीयों ने अपना स्वतंत्रता आंदोलन तेज कर दिया, फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने देश को स्वतंत्र कर दिया। इन्हीं दिनों देश का बँटवारा हुआ। बँटवारे के परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम दंगों की अग्नि चारों ओर भड़क उठी गाँधीजी ने इस अग्नि को शांत करने के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी। उन्होंने नोआखाली जैसे स्थानों की यात्रा की। अंत में हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयास के दौरान ही वे नई दिल्ली में गोली के शिकार हुए और अपने वियोग के महासागर में संपूर्ण राष्ट्र को रोता-बिलखता छोड़कर सन् 1948 ई० की 30 जनवरी को स्वर्ग सिधार गए।

उपसंहार – राष्ट्रपिता गाँधी जी अनन्य देशप्रेमी थे। उनका संपूर्ण जीवन देश की सेवा में ही बीता था। उनके कार्यों में सबसे महान कार्य भारत की स्वाधीनता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने खादी प्रचार, चरखा प्रचार, ग्राम-सुधार, हिंदी प्रचार, गौसेवा, अछूतोद्धार और मादक द्रव्य निषेध आदि कार्य किए। वे अपने सिद्धांतों पर अविचल भाव से सदा दृढ़ रहे।