छत्रपति शिवाजी
जैसे आज भारत स्वाधीन तथा एक ही केन्द्रीय सत्ता के अधीन है, इसी प्रकार पूरे राष्ट्र को विदेशी और आतताई राज्य-सत्ता से स्वाधीन करा सारे भारत में एक सार्वभौम स्वतंत्र शासन स्थापित करने का एक प्रयत्न स्वतंत्रता के अनन्य पुजारी वीर प्रवर शिवाजी ने भी किया था। इसी प्रकार उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता सेनानी स्वीकार किया जाता है। यों शिवाजी पर मुस्लिम विरोधी होने का दोषारोपण किया जाता है; पर यह सत्य इसलिए नहीं कि उन की सेना में तो अनेक मुस्लिम नायक एवं सेनानी थे ही, अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदारों जैसे लोग भी थे। वास्तव में वीर प्रवर शिवाजी का सारा संघर्ष उस कट्टरता और उद्दण्डता के विरुद्ध था, जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले लोगों ने अपना रखा था। नहीं तो वीर शिवाजी राष्ट्रीयता के जीवन्त प्रतीक एवं परिचायक थे। इसी कारण निकट अतीत के राष्ट्रपुरुषों में महाराणा प्रताप के साथ-साथ इनकी भी गणना की जाती है।
शिवाजी शाहजी और माता जीजाबाई की सन्तान थे। माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरांगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण, महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की उज्ज्वल कहानियाँ सुना और शिक्षा देकर किया था। दादा कोणदेव की संरक्षता में उन्हें सभी तरह की समायिक युद्ध आदि विधाओं में भी निष्णात बनाया था। धर्म, संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी। उस युग के परम सन्त रामदेव के सम्पर्क में अपने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्यपरायण एवं कर्मठ योद्धा बन गए। बचपन में ही शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बन युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका यह खेल वास्तविक कर्म बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। जैसे ही तोरण और पुरन्दर जैसे किलों पर उनका अधिकार हुआ, वैसे ही उन के नाम और कर्म की दक्षिण में तो धूम मच ही गई, खबरें आगरा और दिल्ली तक भी पहुँचने लगीं। अत्याचारी किस्म के यवन एवं उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झाँकने लगे ।
शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को पकड़ न पाए, तो उनके पिता शाहजी को ही गिरफ्तार कर लिया। पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो उठे। नीति और साहस से काम ले, छापामारी का सहारा लेकर जल्दी ही पिता जी को मुक्त करा लिया। तब बीजापुर के शासक नें जीवित अथवा मृत पकड़ लाने का आदेश देकर अपने चुस्त एवं मक्कार सेनापति अफजलखां को भेजा। उसने सुलह और भाईचारे का नाटक रच कर शिवाजी को बाहों के घेरे में लेकर मारना चाहा पर नीतिज्ञ और समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर स्वयं मारा गया। उनकी सेनाएँ शिवाजी की सेनाओं के समझे-बूझे आक्रमण का शिकार होकर या तो मारी गई या दुम दबाकर भाग जान बचाने को विवश हो गई।
दक्षिण के राज्यों पर अपना दबदबा बैठा लेने के बाद वीर शिवाजी का ध्यान उधर स्थित मुगलों के अधीनस्थ राज्यों-किलों की ओर गया। एक-के-बाद-एक किला अधीन होते देख औरंगजेब ने जयपुर के महाराजा जयसिंह को शिवाजी पर आक्रमण करने भेजा। वे शिवाजी को समझा-बुझा कर अपने साथ आगरा ले गए। लेकिन शिवाजी को उनके योग्य स्थान देने के स्थान पर जब दस-बीस हज़ारियों के साथ बैठाना चाहा, तो इसे अपना अपमान मानकर शिवाजी कटु वचन कह कर दरबार से चले गए। औरंगजेब ने आगरा किले में उन्हें नज़रबन्द करवा दिया। लेकिन शिवाजी भी कम नीतिवान नहीं थे। वे मिठाई के टोकरे में बैठ किले से बाहर आ गए, जहाँ घोड़े उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन पर सवार हो चालाकी से मुगल राज्य की सीमाएँ पार करते हुए सुरक्षित अपने स्थान पर आ पहुँचे। विक्षुब्ध औंरगजेब बाद में तरह तरह के उपाय करके, प्रलोभन देकर वीर शिवाजी को पकड़ने, अधीन बनाने या मरवा डालने का प्रयास करता रहा; फिर शिवाजी की वीरता एवं गौरव ने एक भी वार ठीक नहीं बैठने दिया ।
अपने राज्य में पहुँच शिवाजी ने और भी कई युद्ध किए, विजय पाई और अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। खानदेश, सूरत, अहमदनगर आदि उनके अधीन हो कर उन्हें चौथ देने लगे। आखिर सन् 1674 ई० में उन्होंने अपने-आपको सब तरह से स्वतंत्र महाराजा घोषित किया और रायगढ़ में छत्रपति शिवाजी के रूप में अपना राज्याभिषेक विधिपूर्वक करवाया। शिवाजी का चरित्र बड़ा ऊँचा था। वे किसी भी जाति की स्त्री पर अत्याचार सहन न कर पाते थे। इसी कारण यदि भूल से भी उनके सैनिक यदि किसी मुगल-मुसलमान बेग़म को पकड़ लाते, तो उनका सत्कार माँ-बहन की तरह कर उन्हें तो सम्मानपूर्वक उन के घर पहुँचवा ही देते, पकड़ कर लाने वाले मराठा सैनिको को उचित दण्ड दिया करते ।
उनका राज्य बड़ा शान्त और सर्वधर्म समन्वय के सिद्धान्त पर आधारित था। वे सभी के साथ अमीर-गरीब, निर्बल-सबल के साथ समान न्याय और व्यवहार करते थे। किसी को भी नाहक पीड़ित या दुःखी न तो किया करते और न देख ही सकते थे। सन् 1680 ई० में स्वर्गवास होने तक उनका जीता और बनाया राज्य अक्षुण्ण बना रहा। राज्य – व्यवस्था, भूमि व्यवस्था आदि सभी व्यवस्थाएँ उन्होंने नए ढंग से की थीं, जो इतिहास में आज भी अमर एवं आदर्श मानी जाती हैं । इन्हीं सब कारणों से वीरवर और छत्रपति शिवाजी को एक आदर्श एवं महान् राष्ट्रपुरुष स्वीकारा जाता है।