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निबंध लेखन : गणतंत्र दिवस (छब्बीस जनवरी)


गणतंत्र दिवस (छब्बीस जनवरी)


प्रस्तावना – तीन शताब्दियों पूर्व विदेशी जातियों ने भारत में आकर हमारे उन प्राचीन आदर्शों और स्वरूपों को विकृत कर दिया, जिसके कारण भारत का स्थान विश्व में सर्वोच्च था। युग के प्रवाह ने भारत को दासता की बेड़ियों में जकड़ दिया और भारत अपने प्राचीन आदर्शों तथा सिद्धांतों को भूलकर विदेशी सिद्धांतों के अंचल में सिसकियाँ भरने लगा। मुस्लिम और यूरोपीय सिद्धांतों ने, दासता के दिनों में भारत को पथभ्रष्ट करने में कुछ कोर-कसर नहीं उठा रखी; किंतु भारतीय अपने सिद्धांतों पर अश्रुपूर्ण नेत्रों से युक्त रहकर भी अड़े रहे। यद्यपि दुर्दिन के बादल भारतीय वायुमंडल पर मंडरा रहे थे, पर भारत ने कभी विदेशी शक्तियों और उनके आदर्शों के सामने अपना मस्तक नहीं झुकाया। भारत ने अपनी स्वाधीनता के लिए, अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष किए। 1857 ई० की क्रांति और 1885 में कांग्रेस का जन्म भारत की इसी स्वाधीन चेतना का परिणाम था।

स्वतंत्रता आंदोलन – स्वतंत्रता का जन्म – धीरे-धीरे युग परिवर्तन की लहरों ने प्रवेश किया। बदलते युग के साथ भारत की स्वाधीनता का स्वरूप भी बदल गया। महात्मा गाँधी की अहिंसात्मक नीति ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को युद्ध से दूर कर दिया। 1930 ई० की 26 जनवरी को लाहौर में रावी के तट पर देश ने स्वाधीनता की प्रतिज्ञा ली। भारत के गृह-गृह में स्वाधीनता की यह प्रतिज्ञा दुहराई गई। कंठ-कंठ से भारत माता की जयकार होने लगी।

आखिर विदेशी सत्ता ने घुटने टेक दिए। 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वाधीन भारत का प्रथम मंत्रिमंडल गठित हुआ। 26 जनवरी को इस मंत्रिमंडल को वे संपूर्ण अधिकार प्राप्त हो गए, जो किसी भी स्वतंत्र देश को प्राप्त होते हैं।

प्रथम गणतंत्र दिवस – यही 26 जनवरी हमारे गणतंत्र का पुनीत दिवस है । इसी दिन भारत ने पुनः अपने उन अधिकारों को प्राप्त किया, जिनके लिए मुस्लिम काल में तलवारें चलाईं और अंग्रेज़ों के शासन काल में अपने अमूल्य बलिदान दिए। 1950 की 26 जनवरी को संपूर्ण भारत में प्रथम गणतंत्र दिवस मनाया गया। देश के कोने-कोने में आनंद और उत्साह की लहर व्याप्त हो गई।

यह 26 जनवरी प्रतिवर्ष आती है और हमारे हृदय में आनंद और उत्साह का संचार करके चली जाती है। हम प्रति वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह बड़े गर्व के साथ इंडिया गेट पर मनाते हैं। महामहिम राष्ट्रपति जी विजय चौक पर सलामी लेते हैं। इस अवसर पर भव्य परेड और सुंदर झाँकियाँ निकलती हैं।

उपसंहार – हमारे देश के गणतंत्र का यद्यपि यह शैशव काल है, पर हमने जो मार्ग ग्रहण किया है, वह उन मार्गों से भिन्न है, जिन पर इस समय विश्व के अन्य प्रजातंत्रीय राष्ट्र चल रहे हैं। आज संपूर्ण विश्व के भीतर हिंसा, द्वेष, प्रतिहिंसा और अपहरण तथा शोषण की भावना ने घर कर लिया है। हमारे देश के गणतंत्र ने इन विदूषित एवं कुत्सित भावनाओं से पृथक् रहकर अहिंसा, प्रेम, समानता और बंधु-भावना को ही अपना संबल बनाया है।