निबंधात्मक प्रश्न : दुःख का अधिकार
दुःख का अधिकार : यशपाल
प्रश्न 1. प्रस्तुत कहानी देश में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेद-भाव का पर्दाफाश करती है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : प्रस्तुत कहानी में स्पष्ट किया गया है कि दुःख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है। कहानी धनी लोगों की अमानवीयता और गरीबों की विवशता को उजागर करती है। जिस प्रकार पतंग को डोर के अनुसार नियंत्रित किया जाता है तथा जब डोर पतंग से अलग हो जाती है तब पतंग हवा के साथ बहती हुई उड़ती है और हवा के कारण अचानक ही धरती पर नहीं आ गिरती। किसी न किसी वस्तु में अटककर रह जाती है। वैसी ही स्थिति हमारी पोशाक के कारण उत्पन्न होती है। खास पोशाक के कारण व्यक्ति आसमानी बातें करने लगता है। उसकी पोशाक उसे अपनी अमीरी का आभास कराती है। वह गरीबों को अपने बराबर स्थान नहीं देना चाहता। उसकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो जाती है। वह चाहते हुए भी किसी के दुःख-दर्द में शामिल नहीं हो सकता। इसी प्रकार लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने ओझा को बुलाकर झाँड़-फूंक करवाया। नागदेव की पूजा करवाई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा दी। बुढ़िया के इसी अंधविश्वास के कारण उसका जवान बेटा काल का ग्रास बना। यदि वह बुढ़िया इन ओझाओं के चक्कर छोड़कर डॉक्टरी सहायता ले लेती तो शायद भगवाना बच जाता। बुढ़िया को भी इस दुखद स्थिति का सामना न करना पड़ता। अपने अंधविश्वास के कारण वह अपना जवान बेटा खो बैठी। इस प्रकार लेखक ने देश में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेद-भावों को व्यक्त किया है।
प्रश्न 2. ‘व्यक्ति के सुख-दुःख में समाज की क्या भूमिका होती है।’
अथवा
प्रश्न. ‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : मनुष्य तभी सामाजिक प्राणी कहलाता है, जब वह समाज में रहते हुए समाज के नियमों, कानूनों व परंपराओं का पालन करता है, क्योंकि समाज में दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व जीवन-मूल्यों को दिया जाता है। इस कहानी में बुढ़िया को घर की मजबूरी फुटपाथ पर खरबूजे बेचने के लिए विवश कर देती है। वह दिल पर पत्थर रखकर लोगों के ताने सहन करती है। लोग ताना देते हुए कहते हैं कि इनके लिए बेटा-बेटी, पति-पत्नी, धर्म-ईमान सभी कुछ रोटी ही होती है। लोग किसी की विवशता पर हँस तो सकते हैं परंतु उनका सहारा नहीं बन सकते। पेट की आग उन्हें दर-दर पर भटकने के लिए मजबूर कर देती है। दूसरों से सहानुभूति के स्थान पर ताने सुनने पड़ते हैं तब मन फूट-फूटकर रोना चाहता है। व्यक्ति के सुख-दुख में समाज अधिकतर नकारात्मक भूमिका अपनाता है। वह उसे पीड़ा पहुँचाने का काम करता है। वह दुश्मनों जैसा व्यवहार करता है। एक रोती-बिलखती हुई स्त्री का दुःख पूछने की बजाय उसे तरह-तरह के व्यंग्य बाणों से घायल किया जाता है। कहानी में उस बुढ़िया के साथ ऐसा ही हुआ।
प्रश्न 3. भगवाना की माँ के लिए नया कफ़न खरीदना क्या उचित था? इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर : भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में तरकारी आदि की खेती कर परिवार का पालन-पोषण करता था। उसकी मृत्यु के बाद उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उसकी माँ के पास अपने पोते-पोतियों का पेट भरने के लिए पर्याप्त मात्रा में अन्न भी उपलब्ध नहीं था। बीमार बहू के इलाज के लिए भी पैसे न थे। ऐसी स्थिति में नया कफ़न खरीदने के रीति-रिवाज का पालन करना बिलकुल अनुचित था। यह एक प्रकार का दिखावा या ढोंग ही था। बुढ़िया माँ को साहस करके इस ढोंग से बचना चाहिए था। अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे किसी भी कपड़े से काम चला लेना चाहिए था। उसे उन पैसों से बीमार बहू का इलाज करवाना चाहिए था, परंतु समाज में रहते हुए व्यक्ति को नियमों, कानूनों और परंपराओं का पालन करना पड़ता है। भावुकता में व्यक्ति विवेक से काम लेने में अपने-आप को असफल पाता है। माँ की ममता के समक्ष सभी कठिनाइयाँ, मजबूरियाँ कमजोर पड़ जाती हैं, तब उसे केवल ध्यान रहता है कि पुत्र की आत्मा को शांति मिले। अतः बुढ़िया ने अपना सब कुछ लुटाकर पुत्र के प्रति अपने ममत्व की भावना प्रकट की।
प्रश्न 4. ‘दुख का अधिकार’ कहानी का मूल भाव क्या है?
उत्तर : ‘दुख का अधिकार’ कहानी में लेखक ने समाज में फैले अंधविश्वास, जातिभेद, वर्गभेद आदि पर कटाक्ष किया है और बताया है कि अपनों के मरने का दुख तो सबको समान रूप से होता है, परंतु उच्च-वर्ग जहाँ इस शोक को अपनी सुविधा के अनुसार कई दिनों तक मना सकता है, वहाँ निम्न वर्ग के अभागे लोगों के पास पुत्र की मृत्यु का शोक मनाने के लिए एक दिन भी नहीं होता, क्योंकि उन्हें अपने पेट की आग बुझाने के लिए तथा परिवार का भरण-पोषण करने के लिए बाहर निकलकर मेहनत-मजदूरी करनी पड़ती है। इस कहानी में लेखक के पड़ोस की संभ्रात महिला पुत्र शोक में अढ़ाई मास तक बिस्तर से नहीं उठ सकी थी जबकि भगवान की मृत्यु के एक दिन बाद ही उसकी माँ को परिवार के लिए रोटी जुटाने के लिए बाजार में खरबूजे बेचने आना पड़ा।