दोहे : रहीम जी


निबंधात्मक प्रश्न


प्रश्न 1. आपसी प्रेम और दुख के बारे में कवि के विचारों को अपने शब्दों में वर्णित कीजिए।

उत्तर : कवि ने प्रेम संबंधों को कभी न तोड़ने की सीख दी है। प्रेम का धागा संबंधों को जोड़ता है। प्रेम रूपी धागे को झटके से नहीं तोड़ना चाहिए। यदि वह टूट जाता है तो फिर नहीं जुड़ता और अगर जुड़ता भी है तो गाँठ पड़ जाती है अर्थात् प्रेम संबंध पूर्ववत् नहीं बन पाते हैं। अतः जब प्रेम संबंध एक बार बन जाते हैं तो उन्हें यत्नपूर्वक बनाए रखना चाहिए। प्रेम संबंधों के टूट जाने पर उनमें पहले जैसा स्नेह नहीं रहता। उनमें खिंचाव बना रहता है। शक बना रहता है। पहले जैसा प्रेम नहीं हो पाता। कितनी भी कीमत देकर प्रेम को बचाने का प्रयास करो, लेकिन सफलता नहीं मिलती।

रहीम जी कहते हैं कि लोगों को अपने मन की पीड़ा को मन में छिपाकर रखना चाहिए। मन के दुख को मन में ही रखना चाहिए, किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। क्योंकि लोग सुनकर मज़ाक उड़ाते हैं। दूसरों के दुख को कोई बाँटना नहीं चाहता अर्थात् उन्हें दूसरों के दुख सुनने की आदत नहीं होती वे उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं। उसके दुख में सहयोग नहीं देना चाहते। इसलिए जहाँ तक हो सके अपना दुख छिपाना चाहिए।

प्रश्न 2. छोटे-बड़े और ऊँच-नीच के बारे में कवि क्या संदेश देते हैं?

उत्तर : रहीम जी कहते हैं कि जीवन में छोटे-बड़े सभी का महत्त्व है। बड़े लोगों को देखकर छोटे लोगों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य का अपना महत्त्व होता है। उदाहरण के तौर पर तलवार देखने में बड़ी होती है। उसका प्रभाव भी बहुत अधिक होता है। लोग तलवारों को अधिक सम्मान देते हैं। परंतु वे लोग यह भूल जाते हैं कि छोटी-सी सुई तलवार से अधिक काम कर सकती है। यदि सुई न हो तो कुछ भी सिला नहीं जा सकता।

एक तलवार जोर लगाने पर भी सुई की जगह नहीं ले सकती। यही स्थिति मानव संबंधों के बारे में भी है, जो लोग स्वयं को बड़ा राजा या शासक मानते हैं, उनका महत्त्व अपनी जगह है किंतु छोटे किसान, मजदूर आदि का भी अपना स्थान होता है। यदि वे सब कर्मचारी न हों तो राजकार्य चलाना कठिन हो जाता। अतः कवि के अनुसार हमें बड़ों के सामने छोटों को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। वे भी अपनी जगह मूल्यवान होते हैं।

प्रश्न 3. रहीम किस व्यक्ति को पशु से भी तुच्छ मानते हैं?

उत्तर : रहीम कहते हैं कि सच्चा मनुष्य वह है कि जो कि प्रसन्नता के क्षण में धन-संपदा दान करने को तुरंत तैयार हो जाता है। वह अपनी बात का समर्थन हिरण के उदाहरण से करते हैं। हिरण संगीत की तान सुनकर मुग्ध हो जाता है। उसकी मुग्धता का लाभ उठाकर शिकारी उसका शिकार कर लेता है। इस प्रकार हिरण जान देकर भी संगीत का आनंद लेता है। कुछ भले मनुष्यों में भी यह गुण होता है। जब वे किसी बात पर रीझ जाते हैं तो अपना सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाते हैं। वे सम्मोहन करने वाले को प्रेम करते हैं, उस पर रीझते हैं, झूमते हैं और उसके लिए बड़े-से-बड़ा दान भी दे देते हैं। जिन मनुष्यों में यह उदारता, तरलता और सहृदयता नहीं होती है, वे पशु से भी तुच्छ होते हैं। उनका जीवन निरर्थक है, बीमार है।