CBSEEducationNCERT class 10thParagraphPunjab School Education Board(PSEB)

दैव-दैव आलसी पुकारा

लेख – आलस्य एक श्राप


आलसी व्यक्ति ही भाग्य का सहारा लेता है। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्गुण है। आलसी व्यक्ति भाग्य पर निर्भर होता है। वह परिश्रम न करके अपने भाग्य के ही सहारे प्रत्येक कार्य करना चाहता है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए एक बोझ के समान होते हैं। ऐसे लोग परिश्रम से सदैव दूर भागते हैं तथा कर्म करने में बिल्कुल विश्वास नहीं करते। वस्तुतः ऐसे लोगों का समाज में कोई भी सम्मान नहीं करता।

भाग्यवादी निकम्मा होता है। हमारे समाज में बहुत से लोग भाग्यवादी हैं और सब कुछ भाग्य पर छोड़कर कर्म से विरत हो बैठ जाते हैं। समाज और राष्ट्र की प्रगति में ये लोग ही मुख्य बाधा हैं। सच तो यह है कि संसार में किसी भाग्यवादी समाज अथवा व्यक्ति विशेष ने कभी उन्नति नहीं की। यहाँ तक कि अपनी दीन-हीन स्थिति, अपनी निरक्षरता और पराधीनता तक को भाग्यवादी अपने भाग्य का खेल मानकर बैठ जाते हैं।

आलसी व्यक्ति निराश, उदासीन और पराश्रित रहता है। व्यक्ति को कदापि परिश्रम से पीछे नहीं हटना चाहिए। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कर्म पर विश्वास करने वाले हमारे देशभक्तों ने ब्रिटिश साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी थी, जिसके फलस्वरूप आज हम स्वाधीन हैं। अन्यथा हम भाग्य के भरोसे बैठे रहते तथा पराधीनता को ही अपना भाग्य मान लेते।