दुविधा
आत्मविश्वास की सबसे बड़ी दुश्मन है – दुविधा, क्योंकि दुविधा एकाग्रता को नष्ट कर देती है।आदमी की शक्ति को बांट देती है। बस वह आधा इधर और आधा उधर, इस तरह खंडित हो जाता है।
एक बार एक पति – पत्नी जंगल में पेड़ के नीचे बैठे बात कर रहे थे। बात करते-करते पत्नी सो गई। वह उपन्यास पढ़ने लगे।
अचानक उन्हें लगा कि सामने से भेड़िया चला रहा है, उन्हीं की तरफ।
भेड़िया, एक खूंखार जानवर, वह इतना घबरा गए कि पत्नी को सोता छोड़कर ही भाग खड़े हुए।
भाग्य से कुछ दूर ही उन्हें एक बंदूकधारी सज्जन मिल गए, वह उनके पैरों पर गिर पड़े। “मेरी पत्नी को बचाइए, भेड़िया उसे खा रहा है”, वह गिड़गिड़ाया।
शिकारी दौड़ा – दौड़ा उनके साथ पेड़ के पास आया तो उसकी पत्नी यथापूर्व सो रही थी और ‘भेड़िया’ उसके पास रखी टोकरी में मुँह डाले पूरियाँ खा रहा था।
“कहां है भेड़िया?” शिकारी ने बंदूक साधते हुए पूछा, तो वह कांपते हुए बोले – “वह तो है सामने।”
शिकारी बहुत जोर से हंस पड़ा – “भले मानस वह बेचारा कुत्ता है।”
क्या बात है यह?
वही कि भय ने उसे विश्वासहीन कर दिया।
सूत्र के अनुसार – हतोत्साहियों, निराशावादियों और डरपोकों और सदा असफलता का ही मर्सिया पढ़ने वालों के संपर्क से दूर रहो।
नीति का वचन है कि जहां अपनी, अपने कुल की और अपने देश की निंदा हो और उसका मुंहतोड़ उत्तर देना संभव ना हो, तो वहां से उठ जाना चाहिए।
क्यों?
क्योंकि इसमें आत्मविश्वास और आत्म गौरव की भावना खंडित होने का भय रहता है।