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झेन की देन : सार


श्री रवीन्द्र केलेकर द्वारा लिखित प्रस्तुत पाठ के अन्तर्गत झेन की देन वर्णित है। प्रस्तुत पाठ के प्रसंग पढ़ने वालों से थोड़ा कहा बहुत समझने की माँग करते हैं। ये प्रसंग महज पढ़ने-सुनने की नहीं, एक जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा भी देते हैं। सारांश निम्न प्रकार है :

(ii) झेन की देन-दूसरा प्रसंग ‘झेन की देन’ बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कुछ चैन भरे पल पा जाते हैं। पाठ के प्रसंगानुसार जापान में लेखक ने अपने एक मित्र से पूछा, “यहाँ के लोगों को कौन-सी बीमारियाँ अधिक होती हैं?” तब उसने कहा, ‘मानसिक’। यहाँ के अस्सी प्रतिशत लोग मनोरुग्ण हैं। हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है, यहाँ लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं। वे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं जिस कारण उनमें मानसिक रोग बढ़ गए हैं। एक दिन लेखक एक जापानी मित्र के साथ टी-सेरेमनी में गया। वहाँ का वातावरण शांतिपूर्ण था। चाय पीने पर उसे शांति प्राप्त हुई और दिमाग की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही थी, वह अनुभव करने लगा कि वह अनंत काल में जी रहा है। उसके सामने वर्तमान क्षण था और वह अनंत काल जितना विस्तृत था। झेन परम्परा की यही देन जापानियों को मिली है।