जैविक शौचालय (Bio-Toilet) क्या होते हैं ?
बायो-टॉयलेट एक अपघटन यंत्रीकृत (Decomposition mechanised) टॉयलेट सिस्टम है जो विशिष्ट उच्च श्रेणी के बैक्टीरिया (एरोबिक या एनारोबिक) का उपयोग करके डाइजेस्टर टैंक में मानव उत्सर्जन अपशिष्ट(Human excretion) को विघटित (Decompose) करता है जो इसे मीथेन गैस, कार्बन डाइऑक्साइड गैस और पानी में परिवर्तित करता है।
गन्दे और बदबूदार सार्वजनिक शौचालयों से निजात दिलाने के लिये जापान की एक गैर सरकारी संस्था ने ‘जैविक-शौचालय’ विकसित करने में सफलता हासिल की है।
ये खास किस्म के शौचालय गन्ध-रहित तो हैं ही, साथ ही पर्यावरण के लिये भी सुरक्षित हैं। समाचार एजेंसी ‘डीपीए’ के अनुसार संस्था द्वारा विकसित किये गए जैविक-शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं को सक्रिय करते हैं जो मल इत्यादि को सड़ने में मदद करते हैं।
इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को पुनः चक्रित (Recycle) कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है। संस्था ने जापान की सबसे ऊँची पर्वत चोटी ‘माउंट फुजी’ पर इन शैचालयों को स्थापित किया है।
गौरतलब है कि गर्मियों में यहाँ आने वाले पर्वतारोहियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सार्वजनिक शौचालयों के चलते पर्वत पर मानव मल इकट्ठा होने से पर्यावरण दूषित हो रहा है।
इस प्रयास के बाद ‘माउंट फुजी’ पर मौजूद सभी 42 शौचालयों को जैविक-शौचालयों में बदल दिया गया है। इसके अलावा सार्वजनिक इस्तेमाल के लिये पर्यावरण के लिये सुरक्षित आराम-गृह भी बनाए गए हैं।
हमारे मल में पैथोजेन होते हैं, जो सम्पर्क में आने पर हमारा नुकसान करते हैं। इसलिये मल से दूर रहने की सलाह दी जाती है। पर आधुनिक विज्ञान कहता है यदि पैथोजेन को उपयुक्त माहौल न मिले तो वह थोड़े दिन में नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य का मल उसके बाद बहुत अच्छे खाद में परिवर्तित हो जाता है जिसे कम्पोस्ट कहते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार एक मनुष्य प्रतिवर्ष औसतन जितने मल-मूत्र का त्याग करता है उससे बने खाद से लगभग उतने ही भोजन का निर्माण होता है, जितना उसे साल भर जिन्दा रहने के लिये जरूरी होता है। यह जीवन का चक्र है।
रासायनिक खाद में भी हम नाइट्रोजन, फास्फोसरस और पोटेशियम का उपयोग करते हैं। मनुष्य के मल एवं मूत्र उसके बहुत अच्छे स्रोत हैं। विकास की असन्तुलित अवधारणा ने हमें हमारे मल को दूर फेंकने के लिये प्रोत्साहित किया है, फ्लश कर दो उसके बाद भूल जाओ।
ट्रेनों में शौचालयों की सफाई के लिए रेलवे E-Toilet सिस्टम शुरू करने जा रहा है। इसके तहत ऑटोमैटिक पोस्ट फ्लश और फ्लोर वाश होगा। इसके तहत यात्री के टॉयलेट इस्तेमाल करने के बाद फ्लश आउट करके दरवाज़ा खोलते ही ऑटोमैटिक पोस्ट सिस्टम अपना काम शुरू कर देगा।
यही नहीं, 5 यात्रियों के इस्तेमाल के बाद फ्लोर वाश सिस्टम की वर्किंग शुरू हो जाएगी, क्योंकि यह सिस्टम दरवाज़ा खुलने और बन्द होने के साथ ऑपरेट होगा। दरवाज़ा खुलते ही इस्तेमाल से पहले ही टॉयलेट सीट साफ हो जाएगी। यह प्रोजेक्ट ‘क्लीन इंडिया-क्लीन रेलवे’ प्रोजेक्ट के तहत चल रहा है।