जीवन में जोखिम लेना जरूरी है।

दो बीज बसन्त के मौसम में उपजाऊ मिट्टी के पास-पास बिखरे हुए थे।

पहले बीज ने कहा – मैं उगना चाहता हूँ। मैं अपनी जड़ें नीचे जमीन की गहराई में जमाना चाहता हूँ और अपने अंकुरों को जमीन की परत के ऊपर धकेलना चाहता हूँ। बसन्त के आगमन की घोषणा करने के लिए मैं अपनी कोमल कलियों को झंडों की तरह लहराऊंगा। मैं अपने चेहरे पर सूरज की गर्मी और पंखुड़ियों और सुबह की ओस की बूंदों को महसूस करना चाहता हूँ।

इसलिए वह बीज उग गया।

दूसरे बीज ने कहा – मुझे डर लग रहा है। अगर मैंने अपनी जड़ें जमीन के नीचे भेजीं, तो क्या पता अंधेरे में वहाँ क्या मिलेगा। अगर मैंने अपने ऊपर की कठोर जमीन में अपने अंकुर धकाए, तो हो सकता है कि मेरे नाजुक अंकुरों को नुकसान हो जाए। अगर मैंने अपनी कलियाँ खोलीं और कहीं घोंघे ने उन्हें खाने की कोशिश की, तो क्या होगा ? अगर मैंने अपने फूल की पंखुड़ियां खोलीं, तो कोई छोटा बच्चा मुझे जमीन से उखाड़ सकता है। नहीं, अच्छा यही रहेगा कि मैं सब कुछ सुरक्षित होने तक यहीं इंतजार करूँ।

इसलिए वह बीज इंतजार करता रहा।

एक मुर्गी वहीं मैदान में खाने-पीने का सामान खोज रही थी। उसे वह इंतजार करता हुआ बीज मिल गया और उसने उसे तत्काल खा लिया।

इस कहानी से सबक मिलता है कि हममें से जो लोग जोखिम लेने और विकास करने से इंकार करते हैं, उन्हें जिंदगी कच्चा चबा डालती है या खत्म कर देती है।