जीवन क्या है ?

एक बार एक यात्री जंगल के मार्ग से अपने गंतव्य की ओर जा रहा था। तभी अचानक एक जंगली हाथी ने उस पर हमला किया और पैर उठाकर लगभग झपट्टा मारा।

बचाव का कोई मार्ग न देखकर वह अपनी पहुंच में दिख रही एक बरगद के पेड़ की डाल पर लटक गया, जिसका सिरा तालाब पर झूल रहा था।

अपने प्राण बचाने के लिए जब वह इधर- उधर देख रहा था, तो डाल के नीचे उसकी दृष्टि गई, वहां साक्षात मृत्यु खड़ी दिखाई दी।

विकराल मगरमच्छ यात्री के पेड़ से नीचे गिरने की बाट जोह रहा था।

भय – कम्पित निरुपाय आंखें ऊपर पेड़ पर गईं तो देखा, शहद का एक छत्ता लटक रहा है और उससे बूंद – बूंद मधु टपक रहा है।

उसके मुख में पानी आ गया। कुछ क्षणों के लिए वह भय को भूल गया। उसने टपकते हुए मधु की बूंद की ओर अपना मुख खोल दिया। कुछ देर वह शहद का स्वाद लेता रहा।

किंतु यह क्या ! वट की जिस पतली सी टहनी को पकड़ कर वह लटका हुआ है उसे एक श्वेत और काला चूहा कुतर रहे हैं। इस प्रकार टहनी थोड़ी ही देर में टूटने वाली थी।

इस कहानी में वह हाथी काल (समय) था, मगरमच्छ मृत्यु था, मधु जीवन रस था, काला और श्वेत चूहा दिन और रात थे।

इन सबका सम्मिलित नाम ही जीवन है।