जनतंत्र में नागरिक के अधिकार – कर्तव्य

लेख – जनतंत्र में नागरिक के अधिकार – कर्तव्य

जनतंत्र एक ऐसी शासन – व्यवस्था है जिसमें जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि जनाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ही शासन – सूत्र संभालते और शासनतंत्र को चलाया करते हैं। इस प्रकार जनतंत्र में जनता ही मुख्य हुआ करती है, सो उसके कर्तव्य और अधिकार भी एक सीमा तक सुनिश्चित रहा करते हैं। एक ध्यान में रखने वाली बात यह भी है कि जनतंत्री – शासन – व्यवस्था में जनता के कर्तव्य पालन की बात पहले आती है, जबकि अधिकारों की बाद में। यहाँ कर्तव्य पालन करने वाला व्यक्ति ही अधिकार की याचना या बात कर सकता है। उन्हें पाने का अधिकारी भी माना या समझा जाता है।

जनतंत्र में कर्तव्य पहले स्थान पर आता है, इसलिए पहले आम नागरिक के कर्तव्यों की चर्चा कर लेना ही उचित रहेगा। जनतंत्र में जन और उसके द्वारा स्थापित शासन के प्रति हर तरह से विश्वसनीय, ईमानदार बने रहना नागरिक का पहला कर्तव्य है। शासन से जुड़े जनप्रतिनिधि जो विधान पारित करते हैं, उनके अनुसार जो नियम और कानून बन कर आते हैं, उनका उचित ढंग से पालन करते रहना, दूसरों से भी पालन करवाना प्रत्येक नागरिक का बुनियादी कर्तव्य हुआ करता है। आम जीवन व्यवहारों में सामाजिक अनुशासन का उचित निर्वाह भी कर्तव्य के अंतर्गत ही आता है। देश में अन्तः – बाह्य हर स्तर पर शांति बनी रहे, किसी प्रकार की अराजकता, अशांति और अव्यवस्था न हो, धार्मिक – सांप्रदायिक विद्वेष – भाव कतई उभरने न पाएं, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक कर्तव्य है। जीवन – यापन के लिए जो साधन उपलब्ध है, सामग्रियां सहज प्राप्त हैं, उनकी सुलभता सभी को हो सके, सभी आवश्यकतानुसार उनका प्रयोग कर सकें, इसका ध्यान भी प्रत्येक नागरिक को रखना आवश्यक है।

इसी प्रकार अपने घर तथा आसपास की सफाई का ध्यान रखना, अपने तथा सभी के स्वास्थ्य की चिंता रखना, अनावश्यक हुल्लड़बाजियों से बचकर एकता, सहयोग, प्रेम, भाईचारे और अहिंसा आदि की स्थितियां बनाए रखना भी जनतंत्र में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। स्वयं शिक्षा – साक्षरता अर्जित कर के दूसरों को भी शिक्षित – साक्षर बनाना भी नागरिक – कर्तव्यों के अंतर्गत आता है। स्वयं काम – धंधा और रोजगार करना, आसपास के बाकी लोगों के लिए यथासंभव काम – धन्धों, रोजगारों को देने – पाने और खोजने में सहायक बनना भी पावन कर्तव्य है। शासन – व्यवस्था और शासक वर्ग पर सजग सतर्क दृष्टि रखना भी आवश्यक है ताकि भ्रष्टाचार पनप कर बढ़ न सके।

इन सभी तथा इन जैसे अन्य सभी नागरिक कर्तव्यों का उचित ढंग से पालन करने वाला व्यक्ति स्वयं ही उन समस्त सुविधाओं और अधिकारों को पाने का अधिकारी हो जाया करता है कि जिनको जनतंत्री – व्यवस्था की बुनियाद कहा जाता है और जिसका इस व्यवस्था में अनिवार्य प्रावधान रहा करता है। रोटी, कपड़ा, आवास – ये तीन हमारे जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं हैं। जनतंत्र में शासन से इनकी मांग करना और पाना हर नागरिक का बुनियादी अधिकार हो जाता है। जनतंत्र में शासन से इनकी मांग करना और पाना हर नागरिक का बुनियादी अधिकार हो जाता है। इसी तरह अपने आसपास सफाई रखने की सुविधा शासन से पाना, उचित और आवश्यक सच्ची शिक्षा की मांग करना, स्वास्थ्य – रक्षा की व्यवस्था पाना आदि भी हर नागरिक के अधिकार माने जाते हैं। पानी – बिजली की व्यवस्था भी नागरिकों के अधिकारों के अंतर्गत ही आती है। नागरिकों की सुरक्षा, उनके जान – माल की सुरक्षा की मांग भी प्रत्येक नागरिक शासन से कर सकता है। प्रत्येक नागरिक अपने जातीय आस्थाओं, रीति – नीतियों के अनुरूप धर्म-कर्म कर सके, रीती – नीतियों का उचित निर्वाह कर सके, इसकी सुविधा और साधन पाने का भी वह सर्वथा अधिकारी माना जाता है।

और भी वैयक्तिक या सामुदायिक सुविधाएं पाना,  इच्छित  सुकार्य कर पाने की सुविधा, अभिव्यक्ति की सुविधा, इच्छानुसार राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संगठन गठित करने की सुविधा, सभी तरह के जन – निकायों के चुनाव लड़ सकने और उनमें हर तरह के भाग ले पाने की स्वतंत्रता, वैयक्तिक – सामाजिक सुरक्षा जैसे अन्य कई या जितने भी तरह के उचित – सार्थक अधिकार होते हैं, जनतंत्र में प्रत्येक नागरिक उन्हें पाने का अवसर एवं अधिकार रखता है। यह एक अलग विचारणीय विषय या प्रश्न है कि आज की जनतंत्रीय व्यवस्था यह सब अपने नगर जनों को दे पाती है या नहीं।

कर्तव्य और अधिकार जीवन – संतुलन के दो आधार तो हैं ही, जनतंत्र के रथ को चलाने वाले दो पहिए भी हैं। एक पहिए के खराब हो जाने पर रथ का संतुलित रह पाना या चल पाना संभव नहीं हुआ करता। ठीक उसी प्रकार से कर्तव्य और अधिकार के संतुलन के अभाव में यों तो कोई भी शासन व्यवस्था नहीं चला करती, पर जनतंत्र का चल पाना तो सर्वथा कठिन हुआ करता है। असंतोष जन – आक्रोश को भड़का कर टकराव एवं आर्थिक अराजकता की स्थितियों को भड़काऊ बना दिया करता है। इस तरह की स्थितियां ना तो जनतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती हैं और न ही नागरिकों के लिए।