जनतंत्री शासन – प्रणाली : गुण – दोष

लेख – जनतंत्री शासन – प्रणाली : गुण – दोष

अत्यंत प्राचीन काल से संसार में जो कई तरह की शासन प्रणालियां प्रचलित रही हैं और आज भी चल रही हैं, उन में से जनतंत्री – शासन प्रणाली को एक महत्वपूर्ण खोज एवं उपलब्धि स्वीकार किया गया है। इस प्रणाली में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सरकार बना कर जनता का हित साधन करने के लिए शासन या सरकार का संचालन किया करते हैं। इस प्रकार वोट के द्वारा चुनी गई सरकार यदि जन – इच्छाओं के अनुरूप शासन नहीं चला पाती, जन – इच्छाएं पूर्ण नहीं कर पाती तो पाँच वर्ष बाद उसे चुनने वाली जनता ही उसके विरुद्ध मतदान करके उसे हटा भी सकती है। इस प्रक्रिया के कारण ऐसा कहा और माना जाता है कि जन – बहुमत के अंकुश का दबाव सरकार पर निरंतर बना रहता है, इस कारण में मनमानी नहीं कर पाती। मुख्यतः इसी कारण अन्य सभी शासन प्रणालियों की तुलना में इस प्रणाली को अच्छा माना जाता है।

सन 1950 में भारतीय संविधान बन कर लागू होने के समय से भारत में इस गणतंत्र या जनतंत्री शासन – प्रणाली से देश का शासन चलाया जा रहा है। इससे प्राप्त हुए अनुभवों के आधार पर ही हम इस इसके गुण – दोषों की व्याख्या एवं विवेचना कर सकते हैं। इस अनुभव के आधार पर यदि दो टूक निर्णय देना हो तो सहज ढंग से कहा जा सकता है कि आज जिस प्रकार का निहित स्वार्थों से लबरेज वातावरण चारों ओर स्वरूपाकार पा चुका है, उसके चलते जनतंत्री शासन – प्रणाली का कहीं कोई औचित्य और सफलता या अच्छाई का प्रतिमान नहीं रह जाता। लेकिन माना जा सकता है कि इसमें दोष प्रणाली का नहीं, बल्कि उसे चलाने वाले दलों एवं उनकी मानसिकता का है। अपने – आप प्रणाली निश्चय ही निर्दोष है।

जनतंत्री शासन – प्रणाली का सबसे बड़ा गुण और विशेषता यह है कि इसमें जन ही आरंभ से अंत तक प्रमुख एवं प्रधान रहा करता है। उसकी उपेक्षा कर के इस प्रणाली की कल्पना तक नहीं की जा सकती। यदि इस प्रणाली में उत्तरदायित्व निश्चित करने की बात भी जोड़ दी जाए तो इससे यह और भी सजीव एवं सप्राण हो सकती है। मूल उद्देश्य की दृष्टि से भी इस प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोच्च मानवी प्रणाली माना जा सकता है। जन –  हित – साधन ही आद्यन्त इस प्रणाली का मूल उद्देश्य स्वीकार किया गया है। मतदान या जनमत द्वारा सरकार एवं उसके सदस्यों, अन्य निकायों का चुनाव इस प्रणाली की एक अन्य विशेषता है। उस पर चुनाव करने वाले जन के हाथ में इच्छा होने पर पाँच साल बाद सभी निर्वाचित सदस्यों को बदल डालने की क्षमता का गुण भी इसमें में विद्यमान रहता है। इस प्रणाली में व्यक्ति – स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति – स्वतंत्रता, सामूहिकता, सहकारिता जैसे अन्य कई महत्वपूर्ण गुण और विशेषताएं भी विद्यमान हैं। यह भी कि जन – निर्वाचित सरकार व्यक्ति और समुदाय के हर सुख – दुख को अपना तो माना ही करती है, उसकी प्रत्येक सुख – सुविधा की व्यवस्था करना भी उसी का कर्तव्य है। रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा, मनोरंजन, कार्य – व्यापार आदि सभी सुविधाओं की मांग प्रत्येक जन अपनी जनतंत्री सरकार से मांग सकता है। इस प्रकार के अन्य कई गुण एवं विशेषताएं भी जनतंत्री शासन – प्रणाली में अवरेखित की जा सकती हैं।

अब तनिक जनतंत्री शासन प्रणाली की कमियों और दोषों पर भी विचार कर लिया जाए। सबसे बड़ा दोष यह है कि इस व्यवस्था में हर सरकारी व्यक्ति उत्तरदायित्व से बचने और उसे दूसरों पर डालने की चेष्टा करता रहता है। दूसरे इसमें कार्यप्रणाली बड़ी ही लंबी, अनेक हाथों से गुजरने वाली और इस कारण उबाऊ भी बहुत है। इस कारण जनता को एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर, एक मेज से दूसरी मेज पर लगातार भटकते रहना पड़ता है। सामान्य मामले भी व्यर्थ के कानूनी शिकंजा और अफसरशाही की टरकाऊ नीतियों का शिकार होकर रह जाते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि सामान्य सा काम कराने वाला व्यक्ति भटकते – भटकते थक हार कर मर – खप जाता है, पर काम नहीं हो पाता। उत्तरदायित्व ना लेने, कार्य प्रणाली लंबी होने के कारण ही यह प्रणाली रिश्वत तथा अन्य कई प्रकार के भ्रष्टाचरणों की जननी भी बन कर रह गई है। व्यक्तिगत कार्य ही नहीं, अपितु कार्यप्रणाली अन्य भ्रष्टाचार का शिकार होकर जन – हिताय बनी योजनाएं भी बोझ एवं महंगाई बढ़ाने वाली साबित हुई एवं हो रही हैं।

इस प्रणाली में क्योंकि नाम मात्र को मुखिया कहलाने वाले मंत्री गण तो आते – जाते रहते हैं, पर अफसरशाह अडिग – अडोल बने रहते हैं। असफलता या प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है। इस प्रणाली ने हर वर्ग में जिस यूनियनवाद को जन्म और बढ़ावा दिया है, उसने काम न कर के भी रौब बनाए रखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर इस प्रणाली का अपना बंटाधार कर के रख दिया है। सो आज जनतंत्री शासन – व्यवस्था हर प्रकार के भ्रष्टाचार की जननी और संरक्षक बनकर, भ्रष्टाचारियों और गुंडा तत्वों को आश्रय देकर सबसे बेकार एवं व्यर्थ होकर रह चुकी है।

एक अच्छी व्यवस्था को हमारे निहित स्वार्थों और भ्रष्टाचारों ने आकण्ठ प्रदूषित कर के रख दिया है। यदि उपरोक्त दोषों – बुराइयों का परिहार संभव हो सके, तभी इस प्रणाली का वास्तविक लाभ जनता पा सकती है, अन्यथा सब बेकार है – एकतंत्र से भी बढ़कर खतरनाक और बेकार।