हमें यह याद रखना चाहिए कि भगवान श्रीकृष्ण गीता का ज्ञान देने के लिए युद्ध का मैदान चुनते हैं। यही युद्ध हमारे भीतर नित प्रतिदिन चलता है, विचारों के रूप में और अंत में जीत किसी एक विचार की ही होती है।
The most intense the situation is, the most aware we are.
काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विदु: |
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा: ||
अर्थात
कर्म कुछ पाने के लिए नहीं किया जाता। कर्म तो अपने भीतर निष्काम का भाव जगाने के लिए किया जाता है। जिस प्रकार विचार का दोष विचार से दूर होता है उसी प्रकार कर्म का दोष कर्म से ही मिटना संभव है।
यदि हम सकाम से निष्काम कर्म करने लगें तो कर्म साधना एवं भक्ति बन जाएगा।
जो कर्म प्रवृत्ति की ओर लेकर जाए , उसका त्याग करें और जो कर्म निवृत्ति की ओर लेकर जाए , उसका अनुष्ठान करें श्रद्धा और भक्ति के साथ।
इस पिंजरे में एक हंस है जकड़ा, जो अजर अमर है आत्मा कहलाया।
मृत्यु क्या है केवल एक माया, उड़ गया रे हंसा अपने घर आया।
तू मौत का गम क्यों करे, प्रारब्ध से तू क्यों डरे
चल छोड़ मन की कमजोरियां रिश्तों की मजबूरियां
जीवन संघर्ष से बचना ही क्या !
क्या सही गलत चुनने आया, जीवन का रण लड़ने आया
सूरज की तरह हर अंधियारा कर भस्म , तू खुद ही जलने आया।
भारत एक ऐसा देश है, जहां सबसे अधिक पढ़ी गई गीता एवं सबसे कम समझी गई गीता।
आईए हम सभी भगवान श्री कृष्ण के इस संदेश को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। 🙏