CBSEClass 9 HindiEducationPunjab School Education Board(PSEB)

गिल्लू का सार


गिल्लू – महादेवी वर्मा


पाठ का सार


‘गिल्लू’ पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया है जिसमें उन्होंने ‘गिल्लू’ नामक एक गिलहरी के बच्चे की चंचलता और उसके क्रिया-कलापों के बारे में बताते हुए उसकी मृत्यु तक का वर्णन किया है। एक दिन लेखिका ने दो कौओं द्वारा घायल किए गए एक गिलहरी के बच्चे को देखा। वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पड़ा रहा। लेखिका उसे धीरे से उठाकर अपने कमरे में ले आई और रुई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर मरहम लगाया। इस उपचार के तीन दिन बाद वह गिलहरी का बच्चा कूदने फाँदने लगा। लेखिका ने उसका नाम ‘गिल्लू’ रखा और फल रखने की डलिया में रुई बिछाकर उसके रहने के लिए घोंसला बना दिया। कुछ ही दिनों में गिल्लू लेखिका से घुल-मिल गया। जब लेखिका लिखने बैठती तो गिल्लू लेखिका के आस-पास तेजी से दौड़कर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता। कई बार लेखिका उसे पकड़कर एक लंबे लिफाफे में बंद कर देती। भूख लगने पर वह चिक-चिक की ध्वनि करके लेखिका को इसकी सूचना देता और लेखिका उसे काजू या बिस्कुट खाने को देती थी। एक दिन लेखिका ने देखा कि गिल्लू बाहर घूमती हुई गिलहरियों को बड़े अपनेपन से देख रहा था। लेखिका ने उसे भी मुक्त करना आवश्यक समझा। उसके खिड़की की जाली से कीलें निकालकर गिल्लू के बाहर जाने का मार्ग खोल दिया। जब लेखिका घर से बाहर जाती तो गिल्लू भी उस रास्ते से बाहर निकल जाता तथा जब लेखिका वापस घर आती तो वह भी खिड़की की जाली के रास्ते घर में आ जाता। लेखिका गिल्लू की एक हरकत से बड़ी हैरान हुई थी। वह हरकत यह थी कि वह लेखिका के साथ बैठकर खाना चाहता था। धीरे-धीरे लेखिका ने उसे भोजन की थाली के पास बैठना सिखाया और तब से वह लेखिका के साथ बैठकर खाता। काजू गिल्लू का प्रिय खाद्य पदार्थ था। एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई, उसे कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। गिल्लू ने उसके पीछे अपना प्रिय खाद्य काजू भी नहीं खाया और लेखिका के घर लौटने पर एक परिचारिका के समान उनकी सेवा की। अंततः गिल्लू का अंतिम समय आ गया। उसने खाना-पीना और बाहर जाना भी छोड़ दिया। वह रात भर लेखिका की उँगली पकड़े रहा और प्रभात होने तक वह सदा के लिए मौत की नींद सो गया। लेखिका ने सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि बनाई। लेखिका को विश्वास था कि एक दिन गिल्लू जूही के छोटे से पीले फूल के रूप में फिर से खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी।


शब्दार्थ

सोनजुही : जुही नामक फूल का एक प्रकार, जो पीला होता है।

अनायास : अचानक।

जीव : प्राणी।

सघन : घना।

हरीतिमा : हरियाली।

लघुप्राण : छोटा जीव।

स्वर्णिम : सुनहरी।

छुआ-छुऔवल : चुपके से छूकर छुप जाना और फिर छूना।

काकभुशुडि : कौआ।

समादरित : विशेष आदर प्राप्त।

अनादरित : जिसे अपमान मिला हो।

अवमानित : अपमानित।

पुरखा : पूर्वज।

पितरपक्ष : वह समय जब अपने मृत पूर्वजों को भोजन कराया जाता है।

अवतीर्ण : प्रकट।

दूरस्थ : दूर रहनेवाला।

प्रियजन : प्रिय लोग।

कर्कश : तीखा।

काकपुराण : कौओं की कथा।

विवेचन : सद्सत में निर्णय।

संधि : जोड़।

सुलभ : आसानी से प्राप्त।

आहार : भोजन।

काकद्य : दौ कौए।

निश्चेष्ट : बिना किसी हरकत के।

उपचार : इलाज।

आश्वस्त : निश्चित।

स्निग्ध : चिकना।

झब्बेदार : घना।

विस्मित : हैरान।

डलिया : टोकरी।

मनका : दाना।

कार्यकलाप : गतिविधि।

तीव्र : तेज।

क्रम : सिलसिला।

लघुगात : नन्हा शरीर।

मुक्त : आज़ाद।

अपवाद : सामान्य नियम से अलग।

खाव्य : खाने योग्य।

आहत : घायल।

अस्वस्थता : बीमारी।

परिचारिका : सेविका।

यातना : कष्ट।

मरणासन्न : मृत्यु के निकट पहुँचा हुआ।

उष्णता : गर्मी।

प्रभात : सवेरा।

स्पर्श : छुअन ।

समाधि : धरती के नीचे शरीर को दफनाना।

पीताभ : पीले रंग का।