महावीर स्वामी से मिलने के लिए, उनसे ज्ञान प्राप्त करने अमीर – गरीब, राजा – रंक सभी जाया करते थे।
एक बार एक राजा की उनसे मिलने की इच्छा हुई। चूंकि वह राजा था, इसलिए भेंट में कोई कीमती वस्तु देकर स्वामी जी के आगे अपना प्रभाव स्थापित करना चाहता था। राजा ने सुंदर – कीमती हीरों का हार लिया और स्वामी जी से मिलने गया ।
महावीर जी से मिलकर जैसे ही राजा ने वह हीरों का हार उनकी ओर बढ़ाया, महावीर जी ने कहा – गिरा दो इसे। राजा ने उनकी बात तो मान ली, परंतु चौंक गया कि इतनी महंगी वस्तु महावीर स्वामी ने इस तरह गिरवा दी ! सोचने लगा, हो सकता है उन्हें पसंद न आई हो ।
दूसरे दिन एक महंगा सा गुलदस्ता लेकर राजा फिर पहुंचा और स्वामी जी को भेंट किया। महावीर स्वामी फिर बोले – पटक दो इसे किसी कोने में ।
राजा ने उसे भी पटक दिया। लेकिन वह कुछ समझ नहीं पा रहा था, वह दिनभर परेशान होता रहा। शाम को अपने मंत्री को बुलाया और सारी घटना बताते हुए पूछा – आखिर बात क्या हो सकती है ?
मंत्री थोड़ा समझदार था। बोला – महाराज, कल आप बिना कोई वस्तु लिए खाली हाथ जाईयेगा।
राजा ने कहा – मैं इतने विशाल साम्राज्य का अधिपति हूँ, ऐसे कैसे खाली हाथ जा सकता हूँ ? जब तक महावीर स्वामी जी को कोई उपहार नहीं दूंगा, मेरी राजशाही (अहंकार) को संतोष कैसे मिलेगा ?
मंत्री बोला – आप अपने में ही भेंट हैं महाराज, आप तो खाली हाथ ही पहुंच जाईएगा।
अगले दिन राजा खाली हाथ चल दिया। मन ही मन सोच रहा था, देखता हूँ, आज स्वामी जी क्या गिराने को कहते हैं। वह राजा था , इसलिए किसी के आगे झुक जाना तो उसके स्वभाव में ही नहीं था।
राजा महावीर स्वामी के सामने तनकर खड़ा हो गया। जैसे ही स्वामी जी की नजर पड़ी, ऊपर से नीचे तक देखा और बोले – आज स्वयं को गिरा दो।
चूंकि वाणी महावीर जैसे सिद्ध – संत पुरूष की थी, इसलिए राजा के कलेजे में गहरे तक उतर गई। समझ में आ चुका था कि फकीर (संत पुरूष) मनुष्य की ‘खुदी’ (अहंकार) को किस प्रकार गिरा देता है। अगले ही क्षण राजा का मस्तक महावीर स्वामी के चरणों में था।
सीख – अहंकार सबसे बड़ा शत्रु है, यह जीवन में खुशियों के रास्ते रोक देता है। जिस दिन झुकना आ गया, आप सभी के लिए स्वीकार्य हो जाएंगे।