CBSEComprehension PassageEducationकाव्यांश (Kavyansh)

काव्यांश


निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर लिखिए।



प्रतीक्षा की

बहुत जोही बाट

जेठ बीता, हुई वर्षा नहीं, नभ यों रहा खल्वाट

आज है आषाढ़ वदि षष्ठी

उठा था जोर का तूफ़ान

उसके बाद

सघन काली घन घटा से

हो रहा आच्छन्न यह आकाश

आज होगी, सजनि, वर्षा हो रहा विश्वास

हो रही है अवनि पुलकित, ले रही निःश्वास

किंतु अपने देश में तो

सुमुखि, वर्षा हुई होगी एक क्या, कै बार

गा रहे होंगे मुदित हो लोग खूब मलार

भर गई होगी अरे वह वाग्मती की धार

उगे होंगे पोखरों में कुमुद पद्म मखान

आँख मूँदे कर रहा में ध्यान

लिखूँ क्या प्रेयसि, यहाँ का हाल

सामने ही बह रही भागीरथी, बस यही है कल्याण

जिस किसी भाँति गर्मी से बच्चे हैं प्राण

आज उमड़ी घन घटा को देख

मन यही करता कि मैं भी, प्रियतमें, उसका करूँ आह्वान

– कालिदास समान

सामने सरपट पड़ा मैदान

है न हरियाली किसी भी ओर

तृण-लता तरुहीन

नग्न प्रांतर देख

उठ रहा सिर में बढ़ा ही दर्द

हरा धुँधला या कि नीला

आ रहा चश्मा न कोई काम

किन्तु मुझको हो रहा विश्वास

यहाँ भी बादल बरसने जा रहा है आज

अब न सिर में उठेगा ! फिर दर्द

गंगा नहाते वक्त

आया ख्याल

हिमालय में गल रही है बर्फ:

आज होगा ग्रीष्म ऋतु का अंत


प्रश्न. ‘आज वर्षा होगी’ कवि के इस अति विश्वास का आधार क्या है?

प्रश्न. ‘उठ रहा सिर में बड़ा ही दर्द’ – पंक्ति के संदर्भ में कवि के सिर में उठने वाले दर्द का कारण क्या है?

प्रश्न. ‘हो रहा आच्छन्न यह आकाश’- पंक्ति में ‘आच्छन्न’ शब्द का अर्थ क्या है?

प्रश्न. शहरी मैदान को कवि ने ‘नग्न’ क्यों कहा है?

प्रश्न. ‘हो रही अवनि पुलकित’ ले रही निःश्वास’ काव्य पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?