काव्यांश
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर लिखिए।
हो गया पूर्ण अज्ञातवास,
पांडव लौटे वन से सहास,
पावक में कनक-सदृश तप कर
वीरत्व लिए कुछ और प्रखर
नस-नस में तेज प्रवाह लिए,
कुछ और नया उत्साह लिए।
सच है, विपत्ति जब आती है
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुख से न कभी उफ ! कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं।
उद्योग निरत नित रहते हैं
भूलों का मूल नसाने को
खुद बुढ़ विपत्ति पर छाने को।
है कौन विघ्न ऐसा जग में
टिक सके वीर नर के मग में
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब ज़ोर लगाता है,
पत्थर पानी न जाता है।
प्रश्न. ‘अज्ञातवास’ का क्या अर्थ है?
प्रश्न. पांडव वन से किस रूप में लौटे थे?
प्रश्न. विपत्ति में किसे घबराहट होती है?
प्रश्न. ‘पर्वत के जाते पाँव उखड़’ – पंक्ति का क्या भाव है?
प्रश्न. ‘मानव जब ज़ोर लगाता है’-पंक्ति में मनुष्य के किस प्रकार के गुण की ओर संकेत किया गया है?