CBSEComprehension PassageEducationकाव्यांश (Kavyansh)

काव्यांश


निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर लिखिए।


अलग नगर के कोलाहल से, अलग पुरी-पुरजन से,

कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन से।

निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर,

वन्यकुसुम-सा खिला कर्ण, जग की आँखों से दूर।

नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,

अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।

समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,

गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल।

जलद-पटल में छिपा, किंतु रवि कब तक रह सकता है?

युग की अवहेलना शूरमा कब तक सह सकता है?

पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,

फूट पड़ी सबके समक्ष पौरुष की पहली आग।

रंगभूमि में अर्जुन था सब सम अनोखा बाँधे,

बढ़ा भीड़-भीतर से सहसा कर्ण शरासन साधे।

कहता हुआ, ‘तालियों से क्या रहा गर्व में फूल?

अर्जुन! तेरा सुयश अभी क्षण में होता है धूल।’

तूने जो जो किया, उसे मैं भी दिखला सकता हूँ,

चाहे तो कुछ नई कलाएँ भी सिखला सकता हूँ।

आँख खोलकर देख, कर्ण के हाथों का व्यापार,

फूले सस्ता सुयश प्राप्त कर, उस नर को धिक्कार।।


प्रश्न. काव्यांश में कठिन साधना में निरत किसे बताया गया है?

प्रश्न. प्रकृति का रहस्य समझ के परे क्यों होता है?

प्रश्न. जलद-पटल में छिपा, किंतु रवि कब तक रह सकता है-पंक्ति का भाव क्या है?

प्रश्न. कर्ण ने अर्जुन को क्यों ललकारा होगा?

प्रश्न. कर्ण किस प्रकार के मनुष्य को धिक्कारता है?