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काव्यांश – मानवता हो मंगलकारी

मानवता हो मंगलकारी

सम्राटों की सत्ता काँपी, भूपों के सिंहासन डोले।

गणतंत्र तुम्हारे आते ही, जन-मन जागे, कण-कण बोले।

गणतंत्र तुम्हारे स्वागत में, प्राणों के पुष्प बिछाए हैं,

आजादी के परवानों ने, हँस-हँस कर शीश चढ़ाए हैं।

आओ – आओ निज जननी को, जुग – जुग गणतंत्र निहाल करो,

फिर गौरवशाली माता का, भू-तल पर उन्नत भाल करो।

डग-डग पर डगमग करने को, पग-पग पर पड़े प्रलोभन हैं,

पथभ्रष्ट कहीं मत हो जाना, मोहक रमणी धरणी जन हैं।

गण-गण में गुण-गण विकसित हों, कण-कण से कायरता भागे,

मन-मन में भद्र भाव उमगे, जन-जन में नैतिकता जागे।

समता, स्वतंत्रता बंधु भाव से गूँज उठे पृथ्वी सारी,

यह लोक ‘सत्य शिव सुंदर’ हो, मानवता हो मंगलकारी ।


काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-


प्रश्न 1. गणतंत्र के आने पर क्या हुआ?

प्रश्न 2. भारतमाता का भाल किस प्रकार उन्नत किया जा सकता है?

प्रश्न 3. कवि ने प्रलोभनों को लेकर क्या बात कही है?