काव्यांश – दीवानों की क्या हस्ती

दीवानों की क्या हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,

मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले,

आए बनकर उल्लास अभी, आँसू बनकर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले?

किस ओर चले? यह मत पूछो, चलना है, बस इसलिए चले,

जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले,

दो बात कही, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।

छककर सुख-दुख के घंटों को, हम एक भाव से पिए चले।

हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,

हम एक निशानी-सी उर पर, ले असफलता का भार चले,

हम मान रहित, अपमान रहित, जी भरकर खुलकर खेल चुके,

हम हँसते-हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाज़ी हार चले।


काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-


प्रश्न 1. कवि ने दीवानों की क्या हस्ती बताई है?

प्रश्न 2.  कवि के हँसने और रोने का क्या कारण है?

प्रश्न 3. कवि के मन में असफलता का भार क्यों है?