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काव्यांश – जिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे

जिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे!

क्या प्रिय स्वदेश को हम स्वाधीन कर सकेंगे?
फिर मान-शैल शिर पर आसीन कर सकेंगे?
हाँ, क्यों न कर सकेंगे, उद्योग जब करेंगे,
जिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे!

ले ढाल दृढ़ क्षमा की, असि सत्य की स्वकर में
रिपु-वर्ग से लड़ेंगे अविराम शम-समर में।
उसके अनात्म-भौतिक बल से नहीं डरेंगे,
जिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे!

अन्याय की गढ़ी को जड़ खोद ढाएँगे हम,
नए की विजय-पताका नभ में उड़ाएँगे हम।
भयभीत भाइयों की भय-भावना हरेंगे,
जिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे!

सर्वस्व जानते हैं जब देश का सदा हम,
उस पर करें निछावर तब क्यों न संपदा हम।
माँ का दिया चुकावें, जग से तभी तरेंगे।
जिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे!


काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-


प्रश्न 1. कवि के मन में क्या शंका उभर रही है?

प्रश्न 2. अपने दुश्मन से किस प्रकार लड़ने की बात कही गई है?

प्रश्न 3. जग से कब तर सकते हैं?