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कार्यक्रम प्रस्तुति (मौखिक अभिव्यक्ति)


कार्यक्रम प्रस्तुति


वाद-विवाद, भाषण आदि की प्रस्तुति के समान कार्यक्रम प्रस्तुति भी एक कला है। कुशल संचालक कार्यक्रम में जान डाल देता है और दर्शकों के भीतर उत्साह उत्पन्न कर देता है। यदि कार्यक्रम की प्रस्तुति सफल न हो तो एक अच्छा कार्यक्रम भी नीरस हो जाता है। ये कार्यक्रम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-प्रतियोगिताएँ और मनोरंजक या ज्ञानवर्धक कार्यक्रम। कार्यक्रम कैसा भी हो, उद्घोषक को कुछ सामान्य नियमों को ध्यान में रखना चाहिए :

1. उद्घोषक को केवल कुछ वाक्यों को रटकर ही नहीं आना चाहिए, अपितु आवश्यकता पड़ने पर स्वयं बोलना भी आना चाहिए। उसमें यह क्षमता होनी चाहिए कि वह परिस्थिति के अनुसार स्वयं बोल सके, खाली समय को भर सके, दर्शकों का ध्यान आकर्षित किए रहे, हाजिर-जवाब हो और इस प्रकार समस्त कार्यक्रम को रोचक बना सके।

2. प्रस्तुतकर्ता को शालीन वेशभूषा में मंच पर आना चाहिए।

3. उसे कार्यक्रम से संबंधित पूर्ण जानकारी होनी चाहिए, केवल जानकारी ही नहीं, उसे पूरी तैयारी करके आना चाहिए।

4. दर्शकों का उचित अभिवादन एवं स्वागत करने के उपरांत कार्यक्रम से संबंधित जानकारी दी जानी चाहिए।

5. यह जानकारी अत्यंत संक्षिप्त होनी चाहिए क्योंकि इसका उद्देश्य केवल जानकारी देना है, दर्शकों को उकताना नहीं।

6. मुख्य अतिथि के स्वागत-परिचय के उपरांत जब एक-एक करके कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएँ तो उनकी भूमिका इस प्रकार बाँधी जाए कि दर्शकों का ध्यान आकर्षित हो जाए और वे आने वाले कार्यक्रम को देखने के लिए उत्सुक हो जाएँ।

7. कार्यक्रम पूरा होने पर अध्यक्षीय भाषण और धन्यवाद ज्ञापन होता है। अध्यक्षीय भाषण में अध्यक्ष का अपना मत हो सकता है, कार्यक्रम के विषय में उल्लेख हो सकता है या पूर्ववक्ताओं के विचारों का। धन्यवाद ज्ञापन में महत्त्व के अनुसार क्रमश: उन सभी व्यक्तियों का नामोल्लेख होना चाहिए, जिनके सहयोग से कार्यक्रम संपन्न हुआ है।

8. कलाकारों/कार्यक्रमों का परिचय देते समय कविता की पंक्तियों, सूक्तियों आदि का सहारा लिया जा सकता है।

9. एक वक्ता के बोलकर जाने के उपरांत धन्यवाद ज्ञापन किया जाना चाहिए ।

10. सभा का ध्यान कार्यक्रम में बना रहे और कलाकारों का उचित सम्मान हो-इसके लिए दर्शकों को शांत रखना और ताली बजवाना भी उद्घोषक का ही काम है, पर यह आदेश के रूप में नहीं, अनुरोध के रूप में होना चाहिए; जैसे : ‘और आइए; अब ज़ोरदार तालियों से स्वागत करें, अपने इन नन्हे-मुन्ने कलाकारों का जो अपनी कलाकारी से आपका मन मोह लेंगे।’

11. यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है कि उद्घोषक को अवसरानुकूल अपनी वाणी में उतार-चढ़ाव तथा भिन्न भावों का प्रयोग करना आता हो। अतिथियों का स्वागत करते समय वाणी में विनम्रता एवं शालीनता, सरस्वती वंदना या दीप प्रज्वलित करते समय श्रद्धा, हास्य के कार्यक्रम प्रस्तुत करते समय हल्की गुदगुदाती भाषा, गंभीर विषयों में गंभीरता और ठोस शब्दों का प्रयोग अपेक्षित होता है।

उदाहरण

1. अतिथि का स्वागत करते समय :

यह हमारा सौभाग्य है कि आज माननीय फादर नोवर्ट हमारे बीच उपस्थित हैं। मैं विद्यालय की प्रबंधक सिस्टर एलिजाबेथ से अनुरोध करती हूँ कि वे मंच पर आएँ और फादर का हम सब से परिचय करवाएँ।

2. छोटे बच्चों द्वारा कार्यक्रम की प्रस्तुति के उपरांत :

वाह ! क्या नृत्य था, संगीत की ताल पर थिरकते ये बच्चे कितनी सरलता से हमारा मन मोह रहे थे, कैसा जोश था इनमें, कैसी उमंग, बहुत सुंदर, बहुत सुंदर।

3. हास्य नाटिका से पूर्व :

जो हँस नहीं सका, वह जी नहीं सका। आज की इस व्यस्त जिंदगी में जब कहीं हँसी के फव्वारे फूट पड़ते हैं तो तनाव से मुक्ति मिल जाती है। आइए देखें, दसवीं कक्षा की ये छात्राएँ कैसे हमें गुदगुदाती हैं। आ रही हैं……

4. पर्यावरण संबंधी गंभीर नाटिका से पूर्व :

पर्यावरण हम सबकी ज़िम्मेदारी है। आज जाने-अनजाने हम सब पर्यावरण को इतना नुकसान पहुँचा चुके हैं कि वह हमारे लिए ही नुकसानदायक हो रहा है। इसकी सुरक्षा ही अब एकमात्र उपाय है। हम जागरूक हों, सचेत हों और एक सजग प्रयास करें तभी इस नष्ट होती सृष्टि को बचाया जा सकता है। देखते हैं एक नाटिका के माध्यम से नवीं कक्षा के छात्र हमसे क्या कहना चाहते हैं।

5. नाटिका के उपरांत : इस लघु नाटिका ने तो हमारी आँखें खोल दी हैं। मेरे साथ-साथ आप सब भी कुछ सोचने के लिए विवश हुए होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।