कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
प्रश्न – कबीर के दोहे के आधार पर कस्तूरी की उपमा को स्पष्ट कीजिए। मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – दोहा –
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
ऐसैं घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहिं।।
कबीर अपने दोहे ‘कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढ़ै वन माँहिं’ में कस्तूरी की उपमा देते हुए कहते हैं कि कस्तूरी मृग की नाभि में रहती है, जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। मृग इससे अंजान हो पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा – मारा फिरता है।
इस साखी में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर – दर भटकता है और कस्तूरी को मनुष्य के हृदय में रहने वाले राम (ईश्वर) के समान माना है।
कवि कहते हैं कि मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति के लिए अपने को नियंत्रित कर पवित्र और सादगी के भाव से ध्यान लगाना चाहिए। उसे सबसे पहले अपने अंतर्मन को शुद्ध कर लेना चाहिए।