कविता : मेरा सपना – मानवता ही धर्म हो अपना
मेरा सपना – मानवता ही धर्म हो अपना
जहाँ सांप्रदायिकता व बैर ना होगा
जहाँ आडंबर व दिखावा ना होगा
जहाँ धर्म के नाम पर दंगा ना होगा
तन, मन, धन से हट बंदा चंगा होगा
ईद, दीवाली, होली, दशहरा सबका पर्व होगा
ना हिन्दू ना मुसलमान किसी का धर्म होगा
केवल व केवल मानवता का धर्म होगा
मेरा यही सपना भारत में मानवता ही धर्म हो सबका अपना।